Death Anniversary Of Atal Bihari Vajpayee : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज छठवी पुण्यतिथि (Death Anniversary Of Atal Bihari Vajpayee) है। ऐसे में पूरा देश उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दे रहा है। अटल जी एक कवि, पत्रकार एवं एक कुशल वक्ता भी थे। उनकी वाक्पटुता, फैसले लेने की क्षमता और राजनीतिक शुचिता की तारीफ करने से विरोधी भी नहीं चूकते थे। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने वो नए आयाम स्थापित किए जिसे उदाहरण के तौर पर आज भी पेश किया जाता है। उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे वाक्ये है जो लोगों को उनका कायल बना देती है और हैरानी में डाल देती है, इन्ही में से एक वाक्या ऐसा जिसके बारे में आज हम आपको बताएंगे, जब अटल जी चुनाव प्रचार के दौरान खुद के लिए नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी नेता के प्रचार के लिए पहुंच गए थे।
Atal Bihari Vajpayee : जब अपनी हार का कारण खुद बने थे अटल जी
बात सन् 1957 की है जब वाजपेयी जी खुद चुनाव लड़ रहे थे, तब देश में दूसरा आम चुनाव हो रहा था और अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) यूपी की मथुरा सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे थे। उस चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। लोग कहते हैं कि वो अपनी हार की वजह खुद बन गए। अब यह हैरान करने वाली बात है कि आखिर वो कौन सी वजह बनी।
खुद की जगह विरोधी नेता के लिए करते थे वोट की अपील
1957 में मथुरा सीट से अटल जी के खिलाफ चुनावी मैदान में राजा महेंद्र प्रताप सिंह खड़े थे। महेंद्र प्रताप सिंह का अपना राजनीतिक इतिहास रहा था। आजादी की लड़ाई में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी और उनके इस योगदान की कद्र करते हुए वाजपेयी जी जब प्रचार करने के लिए जाते थे तो खुद की जगह उन्हें वोट देने की अपील करते थे। एक सभा में उन्होंने कहा था कि मथुरा के लोगों आप से अपील करता हूं। बेहतर होगा कि उनकी जगह आप लोग महेंद्र प्रताप सिंह को विजयी बनाएं। खास बात यह कि मथुरा सीट पर महेंद्र प्रताप सिंह के पिता भी अपनी किस्मत आजमा रहे थे।
जब अपनी जमानत भी गंवा बैठे थे अटल जी
चुनाव के नतीजे जब सामने आए तो महेंद्र प्रताप सिंह भारी वोटों से चुनाव जीत गए और अटल बिहारी वाजपेयी चौथे स्थान के साथ साथ अपनी जमानत भी गंवा बैठे। बता दें कि 1957 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ना सिर्फ मथुरा बल्कि लखनऊ और बलरामपुर से भी किस्मत आजमा रहे थे। मथुरा के साथ साथ उन्हें लखनऊ सीट पर हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन बलरामपुर सीट से जीतकर वो संसद में पहुंचने में कामयाब हुए।
कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह
1957 के बाद महेंद्र प्रताप सिंह एक तरह से भुला दिए गए थे लेकिन उनका नाम तब चर्चा में आया जब पीएम नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ में उनके नाम पर विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया। यह वो शख्स थे जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के दौरान अफगानिस्तान में निर्वासित सरकार का गठन किया था और खुद उसके राष्ट्रपति बने।
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[…] अटल बिहारी वाजपेयी 2 मंथली, राष्ट्रधर्म और पांचजन्य के संपादक रह चुके हैं। […]