मासूम सा वो,
झल्ली सी मैं।।
सुलझा सा वो,
उसमें उलझी सी मैं।।
वो गुपचुप सा,
मैं बक-बक सी
मैं उसकी कुछ-कुछ सी,
वो मेरा सब कुछ सा।।
वो झील के ठहरे पानी सा,
मैं झरने के कल-कल सी।।
मैं चंचल मस्त हवाओं सी,
वो पवन के ठंडे झोंके सा।।
मेरें शामों का उजियारा वो
मैं उसके रातों में जुगनू सी।।
मैं कागज बेरंग सी,
वो रंगरेज मेरे अल्फाजों का।।
मैं उसके जिंदगी में एक अधूरे किस्से सी,
और वो पूरी किताब सा।।
अंकिता यादव
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Bahut badhiya ankita diii, kya khoob likha hai uske yaad me.