हम पे अहसान भी दिल्लगी की तरह,
हर खुशी तुम ने दी ना खुशी की तरह।
हम पे हावी है वो इस कदर एक दिन,
हम भी दिखने लगेंगे उसी की तरह।
आरिज़-ए-गुल पे भी ओस बिखरी रही,
मेरी आँखों मे फैली नमी की तरह।
चंद फाको के जुज़ और कुछ भी नही,
कोई है बद्दुआ मुफलिसी की तरह।
खूं रुलाती है हमको कदम दर कदम,
ज़िंदगी अब नही ज़िंदगी की तरह।
है जनाज़ा मोहब्बत का निकलेगा ही,
शान से रुतबा-ए-कैसरी की तरह।
उम्र भर जिनको चाहा था रब मानकर,
पेश आने लगे अजनबी की तरह।
तू गए वक़्त सा फिर न लौटा कभी,
मुंतज़िर था मैं बूढ़ी सदी की तरह।
ये गिला किसलिए हमसे पीर-ए-मुगाँ
मैकशी हम ने की बंदगी की तरह।
रफ्ता-रफ्ता निगल जाएगी ये मुझे,
रौशनी हो गयी तीरगी की तरह।
मियां गुनगुना दर्द को भी कभी,
इनको महसूस कर शायरी की तरह।
By- विकास मिश्र
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आरिज़-ए-गुल पे भी ओस बिखरी रही,
मेरी आँखों मे फैली नमी की तरह।
बेहतरीन…❤️❤️❤️❤️
बेहतरीन