Sunday, May 12, 2024
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Kavya Rang : हां मैं स्त्री हूं

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हां मैं स्त्री हूं, सरल भी हूं
सहज भी हूं कठोर भी औऱ कोमल भी हूं

शक्ति हूं, संवेदना हूं
त्याग हूं, सहनशीलता हूं
और ममत्त्व से परिपूर्ण भी हूं
हां मैं स्त्री हूं

भगवान को भी अपने गर्भ में
रखने की ताकत रखती हूँ,
इस सृष्टि का सृजन, बिन मेरें अधूरा है

फिर भी मैं सदियों से कुचली जा रही हूं
बावजूद इसके मैं गर्व से अपने,
सर को उठाकर चलती हूं

मैं भी तितली बन उड़ जाना चाहती हूं
पर डरती हूं कि कहीं मुझे
तुम पकड़कर किताबों में बंद न कर दो।

मैं भी चिड़िया बन खुली
आसमान में पंख पसार उड़ना चाहती हूं
पर दिखता है पिजड़ा
तुम्हारे हाथों में तो सहम सी जाती हूं,
कहीं कैद न कर लो

मैं चल पड़ना चाहती हूं,
निचाट बेधड़क सड़कों पर अकेली
पर घूरती हैं तुम्हारी लोलुप आंखें

अपनी हर इच्छाओं को
दफन कर जी रही हूं,

हर प्रताड़ना को सह रही सदियों से
फिर भी अडिग खड़ी हूं
हां मैं स्त्री हूं।

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