Sunday, December 15, 2024
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PM मोदी का अनोखा अंदाज, स्वतंत्रता सेनानी की बेटी के आगे हुए नतमस्तक, पैर छूकर यूं लिया आशीर्वाद

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को भीमावरम में हुए स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती समारोह में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन के बाद आंध्र प्रदेश के प्रमुख स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी पासाला कृष्‍णमूर्ति के परिवार से मुलाकात की। मोदी ने व्हीलचेयर पर बैठीं उनकी 90 वर्षीय बेटी पासाला कृष्‍ण भारती के पैर छुए। साथ ही स्‍वतंत्रता सेनानी की बहन और भतीजी से भी मिले। पीएम मोदी से इस प्रकार का आदर-भाव पाकर 90 वर्षीय भारती ने उन्हें आशीर्वाद दिया।

दरअसल, पीएम मोदी ने भीमावरम में हुए स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती समारोह में हिस्सा लिया था। सूबे के सीएम वाई एस जगन मोहन रेड्डी की मौजूदगी में पीएम ने राजू की मूर्ति का अनावरण किया। मोदी ने संबोधन में कहा, “आज जहां देश आजादी के 75 साल का अमृत महोत्सव मना रहा है तो साथ ही अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती का अवसर भी है। संयोग से इसी समय देश की आज़ादी के लिए हुई रम्पा क्रांति के 100 साल भी पूरे हो रहे हैं।” पीएम के मुताबिक, अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जन्म जयंती और रम्पा क्रांति की 100वीं वर्षगांठ को पूरे साल मनाया जाएगा।

आजादी का संग्राम केवल कुछ सालों का इतिहास नहीं-पीएम

बकौल प्रधानमंत्री, “आजादी का संग्राम केवल कुछ सालों का, कुछ इलाकों का या कुछ लोगों का इतिहास नहीं है। यह इतिहास भारत के कोने-कोने और कण-कण के त्याग, तप और बलिदानों का इतिहास है।” पीएम आगे बोले- आज अमृतकाल में इन सेनानियों के सपनों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी हम सभी देशवासियों की है। हमारा नया भारत इनके सपनों का भारत होना चाहिए। एक ऐसा भारत जिसमें गरीब, किसान, मजदूर, पिछड़ा, आदिवासी सबके लिए समान अवसर हों।

जानिए कौन थे पसला कृष्णमूर्ति?

26 जनवरी 1900 को आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी हिस्से में जन्मे कृष्णमूर्ति 1921 में पत्नी के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। यह तब की बात है, जब महात्मा गांधी विजयवाड़ा गए थे। कृष्णमूर्ति दंपति ने सत्याग्रह आंदोलन में भी हिस्सा लिया था और छह अक्टूबर 1930 को उन्हें एक साल की कैद की सजा भी सुनाई गई थी। हालांकि, गांधी-इरविन समझौते की वजह से 13 मार्च 1931 को उन्हें रिहा कर दिया गया था। पसला खादी के फैलाव के साथ समाज में हरिजन के उत्थान के लिए भी लड़े थे। पश्चिमी विप्परू में दंपति ने एक अस्पताल भी बनवाया था।

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