ऐ जिंदगी…
खूबसूरत होकर भी क्यों उलझी है तू?
कभी रिश्तों में,
कभी खुद की मान-मर्यदाओं में।
अपनापन पाकर भी,
क्यों होती है तू तन्हा?
कभी इर्ष्या में,
कभी द्वेष में।
ऐ जिंदगी…
खूबसूरत होकर भी
क्यों उलझी है तू?
कभी खुद के ईमान में,
कभी गैरों के सम्मान में।
सब कुछ हासिल होकर भी,
थोड़ी रह जाती है कश्मकश में,
लेकर
जन्म के शान से,
चिता के शमशान में।
ऐ जिंदगी…
खूबसूरत होकर भी,
क्यों उलझी है तू?
पूछता हूं खुद से
कभी व्यथित मन से,
कभी व्यथित जिंदगी से।।
By- राहुल सेठ
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