Sunday, July 14, 2024
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Cyclone Remal : बंगाल से टकराएगा ‘रेमल’ चक्रवात, जानें कैसे पड़ता है तूफान का नाम, कौन तय करता है इन्हें?

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Cyclone Remal : हम अक्सर सुनते और पढ़ते है जब भी कोई तूफान आने वाला होता है, तो पहले से ही उसे कोई ना कोई नाम दे दिया जाता है. जैसे अभी चक्रवात रेमल जो पश्चिम बंगाल के सागर द्वीप और बांग्लादेश के खेपुपाड़ा के बीच रविवार की आधी रात को टकरा सकता है। वहीं मौसम विभाग द्वारा शनिवार को यह जानकारी दी गई है. बंगाल की खाड़ी में मानसून से पहले इस मौसम में यह पहला चक्रवात है। अब सवाल ये उठता है कि किसी तूफान को नाम कैसे दिया जाता है? जैसे इस तूफान का नाम रेमल (Cyclone Remal ) क्यों पड़ा ये क्या है और तूफानों को नाम देने की शुरुआत कब हुई? ऐसे कई सवाल है जो अक्सर उठते रहते है, तो आइये आज इसके बारे में जानते हैं…

110-120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से टकरा सकता है

मौसम विभाग के अनुसार, चक्रवाती तूफान (Remal Cyclone) 110-120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से टकरा सकता है। यह भी कहा गया है कि चक्रवाती तूफान 135 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार पकड़ सकता है। मौसम विभाग ने 26 मई और 27 मई को पश्चिम बंगाल और उत्तरी ओडिशा के तटीय जिलों में अत्यधिक भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में 27 मई और 28 मई को भारी से भारी वर्षा हो सकती है। तूफान के टकराने के समय समुद्र में 1.5 मीटर ऊंची लहरें उठने की आशंका है जिससे तटीय पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के निचले इलाके डूब सकते हैं।

जानें रेमल का अर्थ

रेमल अरबी भाषा का शब्द है, इसका मतलब है रेत। ब्यूरो ऑफ मेट्रोलॉजी के मुताबिक, एक खास तरह की स्थिति चक्रवात के लिए जिम्मेदार होती है। चक्रवात तब बनता है जब समुद्री की सतह का टेम्प्रेचर 26.5 डिग्री से ज्यादा हो जाता है। गर्म और नमीं वाली हवाएं ऊपर की तरफ उठने लगती हैं, जैसे-जैसे ये हवाएं ऊपर की तरफ जाती हैं, इनके नीचे की तरफ कम दबाव वाला क्षेत्र बनता है। वहीं जैसे-जैसे आसपास की हवाओं से कम दबाव वाले क्षेत्र प्रेशर बढ़ता है यह चक्रवात की शक्ल लेने लगता है। चक्रवात कुछ दिन या कुछ हफ्ते तक रह सकता है।

दरअसल, जब एक ही स्थान पर कई तूफान एक्टिव हो जाते हैं तब ऐसी स्थिति में भ्रम को रोकने के लिए डब्ल्यूएमओ के निर्देशों के अनुसार चक्रवातों का नामकरण किया जाता है। इस आदेश के तहत, छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र (RSMCs) और पांच क्षेत्रीय उष्णकटिबंधीय तूफान चेतावनी केंद्रों (TCWCs) को एडवाइजरी जारी करने और दुनियाभर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को नाम देने के लिए अधिकृत किया गया है। 1950 के दशक से पहले तूफानों का कोई नाम नहीं होता था।

इस सन् से हुई तूफानों के नाम रखने की शुरुआत

अटलांटिक क्षेत्र में चक्रवातों के नामकरण की शुरुआत वर्ष 1953 की एक संधि से हुई, जबकि हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर इन तूफानों के नामकरण की व्यवस्था वर्ष 2004 में शुरू की। इन आठ देशों में भारत, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, थाईलैंड और श्रीलंका शामिल हैं। साल 2018 में ईरान, कतर, सउदी अरब, यूएई और यमन को भी इसमें जोड़ा गया। यदि किसी तूफान के आने की आशंका होती है तो ये 13 देशों को क्रमानुसार 13 नाम देने होते हैं।

कैसे दिया जाता है तूफान को नाम?

अब जानते है कैसे दिया जाता है नाम तो बता दें कि किसी भी तूफान का नाम देने के लिए वर्णमाला के हिसाब से एक लिस्ट बनी हुई होती है, हालांकि तूफान के लिए Q, U, X, Y, Z अक्षरों से शुरू होने वाले नामों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। अटलांटिक और पूर्वी उत्तर प्रशांत क्षेत्र में आने वाले तूफानों का नाम देने के लिए छह लिस्ट बनी हुई है और उसी में से एक नाम को सेलेक्ट किया जाता है। अटलांटिक क्षेत्र में आने वाले तूफानों के लिए 21 नाम मौजूद हैं।

इस फॉर्मूले का भी होता है प्रयोग

तूफानों के नामकरण के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूले का भी प्रयोग होता जाता है। ईवन साल जैसे- अगर 2002, 2008, 2014 में अगर चक्रवाती तूफान आया है तो उसे एक पुलिंग नाम दिया जाता है। वहीं, ऑड साल जैसे- 2003, 2005, 2007 में अगर चक्रवाती तूफान आया है तो उसे एक स्त्रीलिंग नाम दिया जाता है। एक नाम को छह साल के अंदर दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जबकि अगर किसी तूफान ने बहुत ज्यादा तबाही मचाई है तो फिर उसका नाम हमेशा के लिए हटा दिया जाता है।

कितनी तबाही लाता है चक्रवात, रेमल से कितना खतरा?

विशेषज्ञ कहते हैं चक्रवात कितनी तबाही लाएगा यह बने दबाव पर निर्भर करता है। यह मजबूत मोबाइल टॉवर और घरों को भी गिराने की ताकत रखता है. रेमल कितनी तबाही मचा सकता है, इसको लेकर मौसम विभाग ने बुलेटिन जारी किया है. शुक्रवार को जारी बुलेटिन में कहा गया है कि इससे घरों को नुकसान हो सकता है। पेड़ जड़ के साथ उखड़ सकते हैं। सबसे ज्यादा केले और पपीते के पेड़ों को है। बिजली और टेलीफोन की लाइन डैमेज हो सकती है। फसलों को नुकसान हो सकता है. जलभराव हो सकता है. तेज हवाएं चल सकती हैं और ट्रैफिक बाधित हो सकता है।

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