Monday, May 20, 2024
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एक अनूठी बांग्ला फिल्म ‘दोस्तजी’, जिसे मिल चुके है आठ इंटरनेशल अवार्ड

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वरिष्ठ पत्रकार- जयनारायण प्रसाद की कलम से

अपनी पहली ही फीचर फिल्म में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई कमाल दिखला दे, तो मानना पड़ेगा उसकी मूवी वाकई अच्छी बनी है ! ऐसी ही एक बांग्ला फिल्म है ‘दोस्तजी’ (टू फ्रेंड्स), जिसने अभी तक आठ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर लिए हैं। दुनिया भर के 26 देशों के महत्वपूर्ण फिल्म महोत्सवों में यह बांग्ला फिल्म दिखाई और सराही जा चुकी है। अमिताभ बच्चन जिसकी सराहना करते हुए ट्वीट करते नहीं थकते। कोलकाता और अपने देश के दूसरे हिस्सों में यह बांग्ला फिल्म (दोस्तजी) इसी ग्यारह नवंबर, 2022 को रिलीज हुई है। देश के नामी बांग्ला और अंग्रेजी अखबारों में ‘दोस्तजी’ फिल्म की तारीफ खूब हो रही है।

दो दोस्तों की अनूठी कहानी

असल में छोटे-छोटे दृश्यों के सहारे ‘जिंदगी की बड़ी बातें’ कहने की कला ही किसी फिल्म को बड़ा और बेहतरीन बनाती है। ‘दोस्तजी’ ऐसी ही एक अनूठी फिल्म है। इस फिल्म में अनेक छोटे-छोटे आकर्षक दृश्य है। तालाब है, पेड़-पौधे हैं, हरियाली है, हिन्दू-मुस्लिम है, सांप्रदायिकता है और इन सबके बीच पल रहे दो बच्चों का मासूम-सा जीवन है। इन सभी चीजों को एक अनूठी-सी कथा में पिरोया है प्रसून चटर्जी ने।

प्रसून चटर्जी इस बांग्ला फिल्म ‘दोस्तजी’ के निर्देशक हैं। युवा है, लेकिन उन्होंने किसी फिल्म स्कूल से पढ़ाई नहीं की है। उनसे बातचीत करने पर लगता है दुनिया भर की बेहतरीन फिल्में वे खूब देखते रहे हैं। अपने सपने को साकार करने के लिए प्रसून चटर्जी लंबे समय से लगे थे। अब जाकर कामयाबी प्रसून चटर्जी के पास आई है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम मचा रही फिल्म

अपनी पहली फिल्म से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम मचाना कोई सामान्य बात नहीं है। बीते 11 नवंबर, 2022 को कोलकाता के ‘नंदन’ प्रेक्षागृह में जब प्रसून चटर्जी की यह फिल्म ‘दोस्तजी’ रिलीज हुई, तो प्रेक्षागृह में दर्शकों की भीड़ देखते ही बनती थी। देखने के पहले तक मुझे लग रहा था यह बच्चों की फिल्म है। मेरी तरह औरों को भी लग रहा होगा ‘दोस्तजी’ कोई चिल्ड्रेन मूवी है। लेकिन, ‘दोस्तजी’ की कथा जैसे-जैसे आगे बढ़ी, लगने लगा यह फिल्म बच्चों की नहीं – बड़ों की कथा है।

जानें दोस्तजी फिल्म की दिलचस्प कहानी

‘दोस्तजी’ (टू फ्रेंड्स) की कहानी वाकई शानदार है। लगभग 110 मिनट की यह फिल्म है तो आठ साल के दो बच्चों की कहानी – एक हिंदू बच्चा (पलाश) और दूसरा मुस्लिम बच्चा (सफीकुल)। पर, इन दो दोस्तों की कहानी भारत में 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस और 1993 में हुए बंबई बम विस्फोट कांड की पृष्ठभूमि में चलती है।

‘दोस्तजी’ असल में भारत-बांग्लादेश सीमा की कहानी है, जहां बड़ी तादाद में मुस्लिम रहते हैं। हिंदू भी है, पर उनकी जिंदगी बहुत सुरक्षित नहीं है। इसी बीच बाबरी मस्जिद तोड़ दी जाती है। सरहद पर रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग प्रतिक्रिया में अपने गांव में ‘छोटी बाबरी मस्जिद’ बनाना चाहते हैं। प्रतिक्रिया में गांव के हिंदू लोग भी पीछे नहीं रहते। हिंदू लोग गांव में राम-रावण युद्ध का नाटक खेलने की घोषणा करते हैं।

ऐसे में दोनों हिंदू-मुस्लिम बच्चों (दोस्तों) पर गांव की इन घटनाओं का असर पड़ता है। ‘दोस्तजी’ फिल्म की कहानी बस इतनी-सी है। इन सारी घटनाओं के बावजूद दोनों बच्चों की दोस्ती बरकरार रहती है। दोनों मजे से हंसते-खेलते हैं, साथ-साथ स्कूल जाते हैं, साथ-साथ ट्यूशन पढ़ते हैं और साथ-साथ अपने गांव में पतंग भी उड़ाते हैं और छोटे तालाब में मछली भी पकड़ते हैं। तभी एक रोज तालाब में खेलते और मछली पकड़ते वक्त हिन्दू बच्चा (आशिक शेख) डूब जाता है और मारा जाता है। फिल्म ‘दोस्तजी’ की कथा यहीं से टर्न लेती है।

मुस्लिम बच्चा (आरिफ शेख) अकेला पड़ जाता है। उसे लगता है उसका दोस्त अचानक उसे छोड़कर कहां चला गया ! वह चीजों को ठीक से समझ नहीं पाता। उसे एहसास होता है उसका दोस्त (पलाश, फिल्म में हिन्दू दोस्त का यही नाम है) कहीं गया नहीं है। यहीं कहीं (जीवित) है प्रकृति में, जीव में और उसकी मासूमियत में। ‘दोस्तजी’ मूवी बहुत बारीकी से चीजों का विश्लेषण करती है। मुस्लिम बच्चे यानी सफीकुल की भूमिका में आरिफ शेख ने बहुत शानदार भूमिका निभाई है। और हिन्दू बच्चे पलाश की भूमिका में आशिक शेख का रोल भी जीवंत है। वाकई दिलचस्प फिल्म है ‘दोस्तजी’ !

इस बांग्ला फिल्म ‘दोस्तजी’ की शूटिंग वर्ष 2017 में शुरू हुई थी – बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित मुर्शिदाबाद जिले के डोमकल इलाके में। डोमकल इलाके के सभी प्राइमरी स्कूलों और मदरसों से बच्चों को जुटाया गया। यह संख्या करीब पांच हजार थी। फिर, आठ महीने तक सभी बच्चों को लेकर लगातार वर्कशॉप की गई।

प्रसून चटर्जी बताते हैं – मुर्शिदाबाद के डोमकल इलाके में प्राथमिक स्कूल और मदरसों की संख्या 50 से ज्यादा है। कोलकाता से डोमकल इलाके की भौगोलिक दूरी लगभग तीन सौ किलोमीटर है। प्रसून चटर्जी बताते हैं इन सभी बच्चों में से आरिफ शेख (फिल्मी नाम – सफीकुल) और आशिक शेख (फिल्मी नाम -पलाश) को चुना गया।

‘दोस्तजी’ फिल्म को देखने पर सत्यजित राय की मास्टरपीस फिल्म ‘पथेर पांचाली’ की याद अनायास ही आती है। राय मोशाय की ‘पथेर पांचाली’ में जैसे ‘कास’ फूल और प्रकृति की मनोरम छटा है ठीक वैसे ही प्रसून चटर्जी की इस फिल्म (दोस्तजी) में भी प्रकृति है, हरियाली है और लहराते ‘कास’ फूल है।

‘दोस्तजी’ फिल्म का छायांकन लाजवाब है। यह काम (छायांकन) तुहिन विश्वास ने किया है और पहली दफा किया है। तुहिन बंगाल में नदिया जिले के राणाघाट में एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक है। अच्छी फिल्में देखने का शौक उन्हें सिनेमा की तरफ खींच लाया और अपनी आंख (कैमरा) से ‘दोस्तजी’ फिल्म में तुहिन ने कमाल कर दिया।

इसी तरह, इस फिल्म का संपादन दो लोगों ने मिलकर किया है। एक है संजय दत्त राय और दूसरे हैं शांतनु मुखोपाध्याय। क्या शानदार संपादन है ‘दोस्तजी’ का ! ‘दोस्तजी’ का संगीत सात्विकी बनर्जी ने दिया है और साउंड डिजाइन खुद निर्देशक प्रसून चटर्जी ने। शुरू में इस फिल्म (दोस्तजी) को निर्माता नहीं मिल रहा था। क्राउड फंडिंग से ‘दोस्तजी’ फिल्म की शूटिंग आरंभ हुई थी, जो बाद में असफल हो गई। ट्रेलर दिखाकर निर्माताओं को तलाशा गया।

पहले प्रसनजीत, रंजननाथ और सौम्य मुखोपाध्याय मिले, फिर ताईवान के ईवी यू-हुआ शेन मिले। इस तरह, यह फिल्म पूरी हुई। पूरी फिल्म को कंप्लीट करने में ढ़ाई करोड़ की लागत आई है। प्रसून चटर्जी बताते हैं क्राउड फंडिंग से मात्र ढ़ाई लाख रुपए जुटाए गए थे। शुरू में लंदन के बीएआई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में ‘दोस्तजी’ का प्रीमियर हुआ। फिर, शिकागो (अमेरिका) के 39वें शिशु फिल्म समारोह में। उसके बाद इसकी रफ्तार और तेज हुई।‌ शारजाह अंतरराष्ट्रीय शिशु फिल्म समारोह, जापान के नारा अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, सीआईएफईजे (यूनेस्को) और पोलैंड के कैमरा इमेज फिल्म समारोह में अनेक दर्शकों ने इसे सराहा। चेक गणराज्य के जेडलिन फिल्म महोत्सव में भी ‘दोस्तजी’ ने पुरस्कार जीते।

अब ‘दोस्तजी’ के इस युवा निर्देशक प्रसून चटर्जी के लिए दुनिया ‘और बड़ी’ हो गई है। इससे पहले 2017 में प्रसून चटर्जी ने एक शॉर्ट फिल्म भी बनाई है ‘शेड्स’ नाम से। साढ़े आठ मिनट की इस फिल्म ने प्रसून चटर्जी को आगे की राह दिखाई। सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन की विरासत (लिगेसी) को अब बंगाल में वे आगे बढ़ाना चाहते हैं। प्रसून चटर्जी की फिल्म ‘दोस्तजी’ की ताज़ा कामयाबी इसका सबूत है।

वरिष्ठ पत्रकार- जयनारायण प्रसाद

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