Bhukund Bhairav Kedarnath : हर वर्ष सैकड़ों भक्त केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) की यात्रा के लिए देव भूमि उत्तराखंड आते हैं, कल से मंदिर के कपाट भी खुल जाएंगे। बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए भक्तों में काफी उत्साह है, यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को कण-कण में भगवान शिव की उपस्थिति की अनुभूति होती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि केदारनाथ यात्रा काल भैरव के दर्शन के बगैर अधूरी मानी जाती है। हर साल केदारनाथ की पूजा से पहले बाबा भैरवनाथ की पूजा की जाती है, इसके बाद ही मंदिर के कपाट खोले जाते है, लेकिन क्या आप जानते है ऐसा क्यों होता? इसके पीछे क क्या वजह है?
6 माह तक भैरवनाथ करते है केदारपुरी की रक्षा
आपने देखा होगा देश में जहां-जहां भगवान शिव के सिद्ध मंदिर हैं, वहां बाबा कालभैरव के भी मंदिर है, चाहे वो काशी के बाबा विश्वनाथ हो या फिर उज्जैन के बाबा महाकाल। ऐसे ही केदारनाथ धाम में भी भुकुंट भैरवनाथ (bhukund bhairav kedarnath) का मंदिर है, यहां भी हर साल केदारनाथ की पूजा से पहले बाबा भैरवनाथ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि केदारनाथ धाम में जब कपाट बंद होते हैं तो 6 माह तक भैरवनाथ ही केदार मंदिर समेत संपूर्ण केदारपुरी की रक्षा करते है, इसलिए जब शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली रवाना होती है तो पहले दिन भैरवनाथ की पूजा की जाती है, फिर यात्रा शुरु होती है।
जबतक नहीं खुलाता भैरवनाथ का कपाट, नहीं होती केदारनाथ की आरती
भुकुंट बाबा को केदारनाथ का पहला रावल माना जाता है। उन्हें यहां का क्षेत्रपाल माना जाता है। बाबा केदार की पूजा से पहले केदारनाथ भुकुंट बाबा की पूजा किए जाने का विधान है और उसके बाद विधिविधान से केदानाथ मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। केदारनाथ मंदिर से डेढ़ किमी की दूरी पर इनका मंदिर स्थित है। भले ही केदारनाथ के कपाट हर साल खोल दिए जाते हैं, लेकिन केदारनाथ की आरती तब तक नहीं होती है, जब तक भैरवनाथ के कपाट नहीं खोल दिए जाते हों।
भैरवनाथ के कपाट खुलने के बाद होती है केदारनाथ की पूजा
केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद शनिवार या फिर मंगलवार को भैरवनाथ के कपाट खोल दिए जाते हैं। भैरवनाथ मंदिर के कपाट खुलने के बाद भगवान केदारनाथ की आरती शुरू होती है। साथ ही भगवान को भोग भी लगाया जाता है। इसी प्रकार केदारनाथ धाम के कपाट बंद करने से पहले भगवान भैरवनाथ के कपाट बंद किए जाते हैं। भैरवनाथ के कपाट खोलने या बंद करने के लिए तिथि तय नहीं की जाती है।
कपाट खुलने के बाद शनिवार या मंगलवार और कपाट बंद होने की तिथि से पहले पड़ने वाले शनिवार या मंगलवार को भैरवनाथ के कपाट खोले और बंद किए जाते हैं। केदारनाथ के कपाट शीतकाल के लिए जब बंद होते हैं तो भगवान भैरवनाथ की भी शीतकालीन गद्दीस्थल में नित्य पूजा होती है। केदारनाथ की डोली के शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ से धाम रवाना होने के पहले दिन भैरवनाथ की विशेष पूजा-अर्चना होती है।
केदारपुरी की रक्षा करते है भैरोनाथ
मान्यता है कि शीतकालीन गद्दीस्थल में होने वाली पूजा के बाद भैरवनाथ केदारपुरी के लिए रवाना हो जाते हैं। केदारपुरी की रक्षा और बाबा केदार के अग्रवीर होने के नाते बाबा केदार से पहले की पूजा भैरवनाथ को दी जाती है। केदारनाथ धाम जाने वाले लाखों भक्त भैरवनाथ के दर्शन करके भी पुण्य अर्जित करते हैं। केदारनाथ धाम से डेढ़ किमी दूरी पर भैरवनाथ का मंदिर स्थित है। यहां एक शिला पर भैरव मूर्तियां हैं। केदारनाथ के पुजारी ही यहां की पूजाएं संपंन्न करते हैं।
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स्थानीय लोग बताते हैं कि वर्ष 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन के लोगों को कपाट बंद करने में काफी परेशानी हुई थी। कपाट के कुंडे लगाने में दिक्कत हो रही थी और फिर उसके बाद पुरोहितो ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल भुकुंट भैरव (Bhukund Bhairav Kedarnath) का आह्वान किया तो कुछ ही समय के बाद कुंडे सही बैठ गए और ताला लग गया। यहां शीतकाल में केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा भुकुंट भैरव के भरोसे होती है।
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