Makar Sankranti 2024 : इस साल 15 जनवरी सोमवार को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है। देश के अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग तरह से मनाने की परंपरा है जैसे कि खिचड़ी, उत्तरायण और लोहड़ी। ये सूर्य की उपासना का पर्व है, इस दिन स्नान दान का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य, धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते है और खरमास की समाप्ति हो जाती है, जिसके साथ ही सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। वैसे तो साल में 12 संक्रांतियां होती है, लेकिन इन सभी में मकर संक्रांति को सबसे खास माना जाता है। चलिए जानते है कि आखिर मकर सक्रांति (Makar Sankranti 2024) का सबसे ज्यादा महत्व क्यों है।
Makar Sankranti 2024 : कैसे एक साल में होती है 12 संक्रांति
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव जब राशि परिवर्तन करते हैं यानी एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे संक्रांति कहा जाता है। ज्योतिष गणना के अनुसार सूर्य देव हर 30 दिन में राशि परिवर्तन करते हैं, इसलिए साल में 12 संक्रांति का योग बनता है। ऐसे में सूर्य देव जिस राशि में प्रवेश करते हैं उसी राशि के नाम पर संक्रांति होती है, जैसे सूर्य जब धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो धनु संक्रांति, सिंह राशि में सिंह संक्रांति ठीक उसी तरह जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे मकर संक्रांति कहते है।
आपको बता दें कि सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो ये पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करने लगती हैं क्योंकि हमारा देश उत्तरी गोलार्ध में है इसलिए सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करने से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य की ये स्थिति बेहद शुभ मानी जाती है।
संक्राति के दौरान सूर्य की रोशनी से फसलें पकती हैं। माना जाता है कि इस दिन से ठंड कम होना शुरु हो जाता है। वहीं धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व के अलावा मकर संक्रांति का आयुर्वेदिक महत्व भी है। संक्रांति को खिचड़ी भी कहते हैं। इस दिन चावल, तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं और इससे शरीर को ताकत भी मिलती है। इस कारण से इस त्यौहार का महत्व अधिक माना जाता है।
मकर संक्रांति पुण्य-महापुण्य काल का महत्व
मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2024) पर पुण्य और महापुण्य काल का भी विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यता अनुसार इस दिन से स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। मकर संक्रांति के पुण्य और महापुण्य काल में गंगा स्नान-दान करने व्यक्ति के सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं और वह स्वर्ग लोग में स्थान प्राप्त करता है।
गीता में भी कहा गया है जो उत्तरायण और शुक्ल पक्ष में देह त्यागता है उसे जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। वह दोबारा मृत्य लोक (पृथ्वी लोक) में नहीं जन्म लेता। इस दिन जूते, अन्न, तिल, गुड़, वस्त्र, कंबल का दान करने से शनि और सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।
जानें इन संक्रांतियों के बारे में भी
- आपको बता दें कि सूर्य जब मेष राशि में आता है तो ये मेष संक्रांति होती है। इसके अलावा जब सूर्य मीन राशि से मेष में प्रवेश करता है तो इस दिन पंजाब में बैसाख पर्व मनाया जाता है। बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। ये दिन भी पर्व की तरह मनाया जाता है। इसे खेती का त्योहार भी कहते हैं क्योंकि रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है।
- आपको बता दें कि सूर्य का तुला राशि में प्रवेश करने पर तुला संक्रांति कहलाता है। अक्टूबर माह के मध्य में इस दिन को कर्नाटक में तुला संक्रमण कहा जाता है। कार्तिक स्नान भी इस दिन से शुरू होता है
- मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 महीने का अंतर होता है। सूर्य इस दिन मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करता है। आपको बता दें कि कर्क संक्रांति जुलाई के मध्य में होती है।
यही कारण है कि इन सभी संक्रांतियों में सबसे ज्यादा महत्व मकर संक्रांति का ही होता है क्योंकि सूर्य, चांद और नक्षत्रों पर आधारित है और सूर्य सबसे अधिक महत्व रखता है।
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