Monday, May 20, 2024
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Karwa Chauth : जाने करवा चौथ में करवे का क्या महत्व है, क्यों इसके बिना अधूरी मानी जाती है पूजा

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Karwa Chauth : हिंदू पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। हिन्दू धर्म में करवा चौथ (Karwa Chauth) के व्रत का विशेष महत्व है। इस साल यह पर्व गुरुवार 13 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की दीर्घायु व उत्तम स्वास्थ्य के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखती है। इसके बाद शाम में भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय जी की पूजा अर्चना कर, चंद्रमा के निकलने के बाद उसे अर्घ्य देकर अपने व्रत को खोलती है। वैसे तो करवा चौथ की पूजा में कई तरह की सामग्रियों का इस्तेमाल होता हैं, लेकिन इसमें मिट्टी के करवा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, इसके बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है। क्या आप जानते है कि करवा चौथ की पूजा में करवा का क्या महत्व है, क्यों इसकी पूजा की जाती है। अगर नहीं तो चलिए आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं।

Karwa Chauth : शुभ मुहूर्त

  • चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 13, 2022 को 01:59 AM
  • चतुर्थी तिथि समाप्त – अक्टूबर 14, 2022 को 03:08 AM
  • करवा चौथ पूजा मुहूर्त – 05:54 PM से 07:09 PM
  • अवधि – 01 घण्टा 15 मिनट्स
  • करवा चौथ व्रत समय – 06:20 AM से 08:09 PM
  • अवधि – 13 घण्टे 49 मिनट्स
  • करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय- 08:09 PM

करवा को मानते है देवी का प्रतीक

करवा चौथ की पूजा में हम अक्सर देखते है कि मिट्टी के करवे का प्रयोग होता है। कहीं-कहीं महिलाएं चांदी के करवे से भी पूजा करती है। आपको बता दें कि करवा को देवी करवा माता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसकी पूजा की जाती है। यही कारण है कि करवा चौथ पर करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है।

जाने क्यों करते है दो करवा की पूजा

अब बात करते है कि दो करवे का इस्तेमाल किया जाता है, तो बता दें कि करवा चौथ की पूजा में दो करवा इसलिए रखा जाता है, क्योंकि इसमें एक करवा को देवी मां का प्रतीक और दूसरे को व्रती महिला का। बता दें कि करवा को साफ-सुथरा कर इसमें रक्षासूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के मिश्रण से स्वास्तिक बनाकर पूजा में प्रयोग किया जाता है।

करवा पूजा विधि

करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं 16 शृंगार कर भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करती हैं। पूजा से पहले पीले रंग की मिट्टी से गौरी जी की प्रतिमा बनाई जाती है और उनकी गोद में गणेशजी को बिठाया जाता हैं। अगर आप मिट्टी की प्रतिमा नहीं बना पाएं है तो बाजार से इस तरह की प्रतिमा खरीद सकते हैं। प्रतिमा घर लाने के बाद उसे साफ-सुथरा कर उसपर रक्षासूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के मिश्रण से स्वास्तिक बनाएं, इसके बाद मां गौरी को सुहाग का सामान अर्पित कर उनकी पूजा-आराधना करते है। इसके बाद करवा भरा जाता है, वहीं कुछ जगहों पर करवा में अनाज, मेवे आदि भरते हैं। करवा पर 13 रोली की बिंदी को रखा जाता है और हाथ में गेहूं या चावल के दाने लेकर करवा की पूजा करें और चौथ की व्रत कथा सुने। इसके बाद चंद्रमा के दिखने पर ही अर्घ्य दें। इसके साथ ही, गणेश जी और चतुर्थी माता को भी अर्घ्य दें।

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