गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
Teachers’ Day 2023 : जीवन में गुरु (Teacher) का स्थान सबसे सर्वोच्च होता है, क्योंकि एक अच्छा शिक्षक ही सही मार्ग पर चलने की राह दिखाता है और सफलता की सीढ़ियों तक पहुंचा सकता है। माता-पिता शिशु को दुनिया में लाते हैं लेकिन दुनिया में जीने की कला, स्वस्थ और सुखी रहने के लिए जरूरी बातें शिक्षक ही सिखाते हैं। हर साल शिक्षकों के सम्मान में 5 सितंबर को टीचर्स डे मनाया जाता है। इस दिन देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्म हुआ था और उन्हीं के सम्मान में इस दिन को ‘शिक्षक दिवस’ (Teacher’s Day 2023) के रूप में मनाया जाता है। इस खास अवसर पर आज हम आपको डॅा राधाकृष्णन जी के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी दिलचस्प बाते बताएंगे, जिसे आपने शायद ही कभी सुना होगा।
Teachers’ Day 2023 : तमिलनाडु में जन्में थे राधाकृष्णन
डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के छोटे से गांव तिरुमनी में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी था, राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में अपनी दूर की चचेरी बहन सिवाकमु से शादी कर ली, जिनसे उन्हें 5 बेटी व 1 बेटा हुआ। इनके बेटे का नाम सर्वपल्ली गोपाल है, जो भारत के महान इतिहासकारक थे। राधाकृष्णन जी की पत्नी की मौत 1956 में हो गई थी।
प्यार से लोग बुलाते थे प्रो साहब
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को लोग प्यार और सम्मान से प्रोफेसर साहब कहकर बुलाया करते थे। उन्होंने आजाद भारत (India) के पहले उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति (President) का पद संभाला था। इनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है, वे दर्शनशास्त्र का भी बहुत ज्ञान रखते थे, उन्होंने भारतीय दर्शनशास्त्र में पश्चिमी सोच की शुरुवात की थी। राधाकृष्णन प्रसिद्ध शिक्षक भी थे, यही कारण है, उनकी याद में हर वर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया (Teachers’ Day 2023) जाता है। उन्हें राज्यसभा के सबसे कुशल सभापति के रूप में भी जाना जाता था, जिसकी एक युक्ति से चाहे पक्ष हो या विपक्ष चुप हो जाता था। वह देश के इकलौते ऐसे राष्ट्रपति थे, जिसने दो युद्ध देखे और दो कार्यवाहक प्रधानमंत्रियों (Prime Minister) को शपथ दिलाई।
जब विदाई के दौरान छात्र हो गए थे भावुक
साल 1921 में मैसूर के सबसे फेमस महाराजा कॉलेज (Maharaja college) में राधाकृष्णन प्रोफेसर रह चुके थे, लेकिन जब उनका ट्रांसफर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर हुआ, तो विश्वविद्यालय के बाहर कुछ इस तरह भीड़ लग गई की मानों कोई समारोह चल रहा हो। छात्र उनकी बग्गी को फूल-मालाओं से सजा रहे थे, लेकिन उनकी आंखों में प्रोफेसर के जाने का गम साफ झलक रहा था। भाषण और मिलन समारोह के बाद जब डॉक्टर साहब जाने के लिए विश्वविद्यालय से बाहर निकले, तो वह बग्गी को फूलों से सजा हुआ देखकर मुस्कुराए, लेकिन फिर एकदम से हौरान हो गए क्योंकि बग्गी में घोड़े नहीं जते हुए थे, बल्कि घोड़ों की जगह खुद छात्र उस बग्गी को खींचकर मैसूर के रेलवे स्टेशन (Railway Station) तक उन्हें छोड़ेने ले गए।
जब अमेरिका में बजने लगा था डॉ. राधाकृष्णन के नाम का डंका
साल 1926 में अमेरिका के हावर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) में जब डॉक्टर साहब ने पश्चिम शैली में भारतीय दर्शन को अंग्रेजी में समझाना शुरू किया तो उन्हें एकसाथ तीन चीजें याद आई। पहले स्वामी विवेकानंद का वो भाषण, फिर भारतीय संस्कृति (Indian Heritage) और फिर स्वामी विवेकानंद के देश से आया ये दार्शनिक पुरोधा। अगले दिन के अखबारों में डॉ. राधाकृष्णन साहब का वक्तव्य और विश्लेषण से छाया हुआ था, हर कोई इसे पढ़ने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा था। बता दें कि, स्वामी विवेकानंद जी (Swami Vivekananda) के बाद, यदि अमेरिकी किसी भारतीय के मुरीद हुए तो उनका नाम डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन था।
सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से किया गया था सम्मानित
साल 1926 में ही डॉक्टर राधाकृष्णन (Radha Krishnan) ने एक किताब लिखी ”द हिंदी व्यू ऑफ लाइफ”, (Hindi View Of life) इन किताबों के जरिए डॉ. साहब का पश्चिमी क्षेत्रों में गुणगान होने लगा। डॉ. राधाकृष्णन को भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद् और महान दार्शनिक के तौर पर जाना जाता है। पूरे देश को अपनी विद्वता से अभिभूत करने वाले डॉ. राधाकृष्णन को भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सममानित किया था।
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