Guru Purnima Special Story : आज पूरे देश में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का पर्व मनाया जा रहा है। शिष्य अपने गुरुओं की पूजा अर्चना कर रहें हैं। ऐसे में इस खास दिन पर हम आपको एक ऐसी शिष्या के बारे में बताने जा रहे है, जो आज भी अपनी अपने गुरु के आदर्शों पर चल रही और गुरु शिष्य की परंपरा का निर्वहन कर रही हैं। जी हम बात कर रहें है शास्त्रीय संगीत की साम्राज्ञी पदम विभूषण गिरिजा देवी की लाडली शिष्या शास्त्रीय गायिका सुनंदा शर्मा की। आइए गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) पर जानते है गुरु और शिष्या के इस प्यारे से रिश्ते की कहानी और उनसे जुड़ी कई दिलचस्प बातें….
शास्त्रीय संगीत की साम्राज्ञी ठुमरी क्वीन पदम विभूषण गिरिजा देवी पूरी दुनिया में भारतीय संगीत की जाना-मानी हस्ती थीं। उन्हें लोग प्यार से अप्पा जी भी कहते थे। उनकी स्वर साधना ने बनारस घराने और भारतीय शास्त्रीय गायन को एक नया आयाम दिया। ठुमरी को बनारस से निकालकर दुनिया के बीच लोकप्रिय बनाने का काम अप्पा जी ने ही किया। ध्रुपद से नाद ब्रम्ह की आराधना करते हुए सुरों को साधने वाली गिरिजा देवी श्रोताओं को संगीत के ऐसे समंदर में डूबाती थीं कि सुनने वाला स्वंय को भूल जाता था।
कुछ यूं हुई शिष्या और गुरु की मुलाकात
दरअसल, गिरजा देवी की मुलाकात उनकी लाडली शिष्या से तब हुई जब जालंधर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले हरिबल्लभ संगीत सम्मेलन में अर्न्तराज्जीय विश्वविधालयों से आए हुए प्रतिभागी अपना-अपना प्रदर्शन कर रहे थे। जिसमें बतौर जज शास्त्रीय संगीत की साम्राज्ञी ठुमरी क्वीन पदम विभूषण गिरिजा देवी को बुलाया गया था। इस सम्मेलन में बनारस से आते हुए अप्पा जी ने भी कल्पना नही की होगी कि जालंधर में उन्हें अपने घराने की और अपने सबसे प्रिय शिष्या मिलने वाली है। इसी सम्मेलन में पंजाब विश्वविधालय का प्रतिनिधित्व करने अपने पिता सुदर्शन शर्मा के साथ सुनंदा शर्मा भी आई थी।
हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले के डाह गांव के निवासी पं. सुदर्शन शर्मा के माता-पिता संगीत से इतना जु़ड़े थे कि अपने बेटे को उस दौर के बड़े-बड़े संगीतज्ञ के कि किस्से कहानी सुनाते। बेटे ने माता पिता की इच्छा को मन से सुना समझा और मध्यवर्गीय जिंदगी के तमाम झमेलों को झेलते हुए वायलिन सीखा और वायलिन बजाने मे परागंत हो गए। उनका विवाह सुदेश शर्मा से हुआ, वो भी संगीत प्रेमी थीं। वहीं शर्मा दम्पत्ति के घर आंगन में आई ज्येष्ठ पुत्री सुनंदा पिता के वायलिन से निकलती कर्णध्वनियों से रोज सुबह उठती हैं।
सुनंदा ने पंजाब विश्व विद्यालय से गोल्ड मेडल जीता
इंटर करने के बाद सुनंदा ने अपने पुरखों के सपने को बेहतर ढंग से साधने की प्रक्रिया में संगीत से स्नातक किया। उसके बाद 1990 में पंजाब विश्व विद्यालय से संगीत में परस्नातक के लिये दाखिल लिया। उसी बरस सुनंदा ने अपने गायन के लिए पंजाब विश्व विद्यालय का गोल्ड मेडल जीता। इस गोल्ड मैडल की चमक ने सुनंदा के सपनों में पंख लगा दिए और इसी मेडल की बदौलत ही सुनंदा हरिबल्लभ संगीत सम्मेलन तक पहुंची थी।
सुनंदा का गायन सुन अप्पा जी आहलादित हो उठी
हरिबल्लभ संगीत सम्मेलन में अन्तरराज्जीय विश्वविधालयों की प्रतियोगिता शुरु हुई। प्रतिभागी बारी-बारी से आते, प्रदर्शन करते , गिरिजा देवी उनका मूल्यांकन करतीं हुई कुछ नोट करतीं। वहीं अपना नंबर आने पर सुनंदा ने जैसे ही अपना गायन शुरु किया, गिरिजा देवी अवाक रह गईं। सुनंदा का गायन सुन अप्पा जी आहलादित हो उठीं, इतनी आहलादित कि मंच से ही घोषणा कर दी कि वह सुनंदा को बनारस ले जा रही हैं।
यह सुनते ही पिता सुदर्शन शर्मा की आखें नम हो गई। उनके सपनों को साकार करने की दिशा में शास्त्रीय संगीत की साम्राज्ञी स्वयं उनकी बेटी को बनारस ले जाने का आग्रह कर रही है, इस बात सुनकर उनकी खुशियों का ठिकाना न था।
पिता ने अपनी भावनाओं को बेटी के स्वर्णिम भविष्य के आड़े नही आने दिया। भावनाओं को वश में किया और गिरिजा देवी के साथ सुनंदा बनारस आ गई। इस तरह 1991 में सुनंदा गुरु मां गिरिजा देवी के यहां बनारस आयीं, जिन्हें वह आदर से अप्पा जी पुकारती थी। बनारस घराने में आना भी ऐसा नहीं होता कि जलेबी दही कचौड़ी खाए और हो गए घराने के। बनारस घराने का पहला कायदा है कि बनारसमय हो जाओ।
बनारस घराने के तौर तरीकों में खुद को ढाला
पंजाब घराने की सुनंदा के लिए यह काम मुश्किल था, लेकिन जहां चाह वहां राह , बनारस के खान पान,बनारस की भाषा, बनारस की विद्वत सब को साधा ,नौ वर्षो तक गुरु मां अप्पा जी के चरणों में बैठकर रियाज किया और बनारस घराने के तौर तरीकों के अनुसार तीन वर्षो के रियाज के बाद पहली बार तानसेन सुर सम्मेलन में गायन का अवसर मिला। उसके बाद तो सुनंदा के गायन की सुगन्ध चौरों ओर फैल गई। आज सुनंदा राष्ट्रीय-अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायिका के रुप में प्रतिष्ठित है।
आज भले ही गिरजा देवी इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनकी परम प्रिय शिष्या ने उन्हें अपना मागदर्शक मानकर उनके आदर्शों को अपने जीवन का प्रेरणा स्त्रोत बनाया है।
न्यूज सोर्स- शिवानी खन्ना
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