Devanshi Sanghvi : बच्चों को घूमना-फिरना खेलना-कूदना नए-नए कपड़े पहनना इन सभी चीजों का काफी शौक होता है, उनका मन बड़ा ही चंचल होता है कब किस चीज की जिद्द कर बैठे पता ही नहीं। आज हम आपको एक ऐसी बच्ची की बारे में बताएंगे जिसे अपने बचपन को त्याग कर सन्यास अपना लिया, जी हां इस उम्र में तो बच्चों को सन्यास क्या होता है शायद ये पता भी नहीं होता, लेकिन एक 8 साल की बच्ची (Devanshi Sanghvi) ने अपने शानो-शौकत भरी जिंदगी को त्याग कर वैराग्य जीवन को गले लगा लिया। शायद आपको भी सुनकर हैरानी हो रही हो, लेकिन यही सच है। चलिए आपको बताते है कि आखिर कौन है ये बच्ची और इसने क्यों ये फैसला लिया….
जानें कौन है ये बच्ची
हम जिस बच्ची की बात कर रहें है उसका नाम देवांशी जैनाचार्य है, जो गुजरात के एक धनी हीरा व्यापारी की बेटी है। खेलने-कूदने और नाचने की उम्र में यह बच्ची ने हजारों लोगों की मौजूदगी में बुधवार को जैन धर्म ग्रहण कर संन्यासिनी बन गई। अपनी दो बहनों में बड़ी देवांशी जैनाचार्य कीर्तियशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा ले रही हैं। उसकी दीक्षा के लिए निकाला गया जुलूस इतना भव्य था कि लोग देखते रह गए। सूरत में देवांशी की वर्षीदान यात्रा में 4 हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊंट शामिल थे, इससे पहले मुंबई और एंट्वर्प में भी देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकली थी।
बचपन से बिताया सात्विक जीवन
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर अनुसार हीरा कारोबारी धनेश सांघवी और उनकी पत्नी अमी की बड़ी बेटी देवांशी ने 367 दीक्षा इवेंट्स में भाग लिया और इसके बाद वह संन्यास धारण करने के प्रति प्रेरित हुई। एक फैमिली दोस्त ने कहा कि उसने आज तक न कभी टीवी देखी और न कभी मूवी। इतना ही नहीं, वह कभी किसी रेस्टोरेंट भी नहीं गई है। बालिग होने पर देवांशी को विरासत में करोड़ों का हीरा कारोबार मिलने वाला था लेकिन उन्होंने इस संपत्ति का त्याग करते हुए आठ की उम्र में ही विलासिता को त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया।
गीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट
देवांशी 5 भाषाएं जानती है। वह संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है। देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं। वहीं बात करें उनके परिवार की तो, ये संघवी एंड संस नाम की हीरा कंपनी चलाता है, जो दुनिया की सबसे पुरानी हीरा कंपनियों में से एक है।
विदेशों में निकाला भव्य जुलूस
देवांशी के परिवार ने बेल्जियम में भी एक जुलूस का आयोजन किया था। बता दें कि ये एक ऐसा देश है जो जैन समुदाय के कई हीरा व्यापारियों का घर है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देवांशी के परिवार के ही स्व. ताराचंद का भी धर्म के क्षेत्र में एक विशेष स्थान था। उन्होंने श्री सम्मेदशिखर का भव्य संघ निकाला और आबू की पहाडिय़ों के नीचे संघवी भेरूतारक तीर्थ का निर्माण करवाया था।
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