No Confidence Motion : पिछले कुछ दिनों से एक शब्द काफी चर्चा में है वो है अविश्वास प्रस्ताव, जिस लेकर सदन में बहस छिड़ी हुई है। आज मंगलावर को भी लोकसभा में इसी पर चर्चा हुई। दिनभर अविश्वास प्रस्ताव पर पक्ष और विपक्ष के सांसदों ने अपने विचार व्यक्त किए। लोकसभा की सदस्यता बहाल होने के बाद राहुल गांधी की संसद में वापसी हो गई है और वो भी इस पर बहस शुरू कर सकते हैं। तीन दिन में 18 घंटे अविश्वास प्रस्ताव को लेकर चर्चा की जाएगी और प्रधानमंत्री मोदी 10 अगस्त को इस पर जवाब दे सकते हैं, लेकिन क्या आप जानते है कि ये अविश्वास प्रस्ताव क्या (No Confidence Motion) है, ये कब-कब आया, इस पर क्यों इतनी बहस हो रही है। बहुत से लोग ऐसे है जो इसके बारे में सुन तो रहे है, लेकिन जानते नहीं कि ये है क्या, तो फिर चलिए हम आपको बताते है…
No Confidence Motion : क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव?
सबसे पहले जानते है अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) क्या होता है, तो बता दें कि जब किसी मुद्दे को लेकर विपक्ष नाराज होता है तो लोकसभा सांसद नोटिस लेकर आता है, जैसे इस बार मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष में नाराजगी है और वह लगातार सदन में इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहे है। एक तरह से सरकार को घेरने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने इसे स्वीकर भी कर लिया है और आज से इस पर बहस शुरू हुई है। मालूम हो कि अविश्वास पर चर्चा के लिए 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है गौरव गोगोई के नोटिस को 50 सांसदों का सपोर्ट मिला है। चर्चा के बाद इस पर वोटिंग की जाएगी।
कब लाया जाता है अविश्वास?
सरकार को लोकसभा में बहुमत साबित करने की चुनौती के लिए इसे लाया जाता है। संविधान के अनुच्छेद-75 के अनुसार, सरकार यानी प्रधानमंत्री और उनका मंत्रीपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है। लोकसभा में जनता के प्रतिनिधि बैठते हैं इसलिए सरकार को इसका विश्वास प्राप्त होना जरूरी है। ऐसे में अगर किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सरकार सदन में अपना विश्वास खो चुकी है तो वह अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है। इसी के आधार पर लोकसभा के रूल 198(1) से 198(5) के तहत कहा गया है कि विपक्षी दल सरकार के खिलाफ अविश्वास का नोटिस लोकसभा स्पीकर को सौंप सकता है।
जानें कब-कब हुआ पास-फेल
बता दें कि, आजादी के बाद से अब तक 27 बार केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ( (No Confidence Motion) लाया गया, लेकिन ये सिर्फ एक बार ही पास हुआ है। जुलाई 1979 में पीएम मोरारजी देसाई ने वोटिंग से पहले इस्तीफा दे दिया था, जिस वजह से उनकी सरकार गिर गई। आखिरी बार अविश्वास प्रस्ताव 20 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पेश किया गया था, तब 325-126 के मार्जिन से मोदी सरकार जीती थी। 23 बार कांग्रेस पार्टी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया, लेकिन 10 साल पीएम रहे मनमोहन सिंह के खिलाफ एक बार भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया। इसके अलावा, 2 बार जनता पार्टी जबकि 2 बार बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास लाया गया।
अगर अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए, तब क्या होता है?
लोकसभा अध्यक्ष यह तय करते है कि प्रस्ताव को चर्चा और बहस के लिए स्वीकार किया जाए या नहीं। यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष चर्चा के लिए तारीख और समय तय करते है। अध्यक्ष प्रस्ताव पर चर्चा के लिए (लोकसभा नियमों के नियम 198 के उप-नियम (2) और (3) के तहत) समय दे सकते हैं। यदि अविश्वास प्रस्ताव ( (No Confidence Motion) पारित हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
अविश्वास प्रस्ताव पर बहस कैसे होती है?
अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में बहस होती है। प्रस्ताव उस सदस्य द्वारा पेश किया जाएगा जिसने इसे पेश किया है, और सरकार तब प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देगी। इसके बाद विपक्षी दलों को प्रस्ताव पर बोलने का मौका मिलेगा।
अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस
अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस 24.34 घंटे हुई
इंदिरा गांधी के खिलाफ 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, सभी मौकों पर उनकी जीत हुई।
लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस 24.34 घंटे हुई।
4 अविश्वास प्रस्ताव CPIM के नेता ज्योतिर्मय बसु ने पेश किया था।
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