व्यथा बस इतनी नहीं,
कथा बस इतनी नहीं,
अभी तो ये संघर्षों की शुरुआत थी।।
संघर्ष तो जीवन के अभी बहुत बाकी थे,
सजना था माथ जिसके मुकुट,
क्षण भर में मिल गया वनवास।।
अभी तो जाना न था प्रजा का हाल,
छीन गया सब मुंदते लोचन,
व्यथा बस इतनी नहीं,
कथा बस इतनी नहीं
कहां पाओगे उस राम सा संघर्ष ?
थे तो वे भगवान वे,
तोड़ सकते थे हर वचन वे,
जो उन्होंने दिया ही नहीं,
जिसे कभी सुना नहीं,
किन्तु रखा आगे पीढ़ियों का ध्यान।।
सोचा क्या सीखेगी दुनिया मुझसे,
छोड़ दिया सब राज काज,
व्यथा बस इतनी नहीं,
कथा बस इतनी नहीं,
स्त्री-अनुज को साथ ले वनवास चले रघुनाथ।।
मर्यादा का पाठ पढ़ाने क्षण भर में राजा से हो गए रंक,
लक्ष्मी जिनके साथ में,
मर्यादा जिनके पास में,
देने को शिक्षा दुनिया को चल पड़े संघर्ष से भरी दुनिया में,
केवट के भाग्य बड़े,
भगवान उसके पास स्वयं पधारे,
ना जाने क्या सोच झगड़ पड़ा भगवान से,
रघुनाथ मंद मंद मुस्काए,
जगत की नैया के खेवइया आज।।
केवट की नैया में बैठे,
व्यथा बस इतनी नहीं,
कथा बस इतनी नहीं,
कहां दिखेगा उस राम सा संघर्ष,
कहां मिलेगा उस राम सा तप।।
वचन ही तो तोडना था,
धर्म ही तो छोड़ना था,
किन्तु भगवान स्वयं नंगे पांव वन पधारे,
सीता का हरण किया रावण,
जगत के सहारे हुए अब असहाय,
लेकर वानरों भालुओं की फ़ौज कूच किए लंका पर,
धारण कर सुदर्शन कर सकते थे वध सबका,
किन्तु मर्यादा का पाठ पढ़ाने।।
भगवान स्वयं जन मानस जैसे युद्ध किए,
वानरों से मिलकर रावन को दिए मोक्ष,
ले पत्नी – अनुज को लौटे अयोध्या रघुनाथ।।
कहां तक टिक सकोगे,
यदि राम सा संघर्ष हो,
यदि राम सा बलिदान हो,
यदि राम सा तप हो,
यदि राम सा जोश हो,
यदि राम सा साहस हो।।
By- © वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक सेठ
