Sunday, December 15, 2024
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Kavya Rang : शंभू तन, शंभू ही मन, वो साथ सर्वदा चलता है…

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स्थिर मन और शब्द शून्य !
प्रतिपल ध्यान , उसी का हो !!

शुद्ध भाव और आर्दश गमन!
तब उपासना पूरी हो !!

कण-कण में, जब व्याप्त वही!
फिर विग्रह तक ही क्यों जाऊँ !!

पर्याप्त दिया और है देता!
फिर क्यों कर, हाथ पसारूँ मैं !!

शुद्ध-भाव का जल लेकर !
नित अंतः-मंदिर , धोता हूँ !!

रात्रि शिवा की आज सभी की!
शिव-रात्रि में, मैं सोता हूँ !!

हूँ मरा नहीं, अभी जीवित हूँ!
वह मुझमें भी बसता है!!

विग्रह, मंदिर, देवालय तक!
सीमित वो नहीं, रहता है !!

हर श्वास में मुझसे, मिलता है!
हर श्वास को मुझमें, जीता है!!

वो मेरा भी, मैं उसका हूँ!
वो मुझको कहता , रहता है!!

शंभू तन, शंभू ही मन!
मन महादेव में रहता है!

नहीं एक प्रहर, नहीं एक दिवस!
वो साथ सर्वदा, चलता है!!

स्थिर मन और शब्द शून्य!
प्रतिपल ध्यान उसी का है!!

शुद्ध भाव और आर्दश गमन!
तब उपासना पूरी है !!

By- Alok Tripathi

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