भूख निगल जाएंगे पागल और हवा को खा लेंगे,
पेट पे पत्थर बांधेंगे पानी से काम चला लेंगे।
कितने ही मासूम बदन जब देखेंगे घर में फांके,
कूड़ा करकट बेचेंगे और अपना बचपन खा लेंगे।
मेरी बस्ती के ये मंज़र देखना नंगी आँखों से,
आग उगलते मंज़र है तुझको अंधा कर डालेंगे।
ठंडे चूल्हे की ये आतिश घर में रोज़ सुलगती है,
भूखे लोग न जाने खुद को किस साँचे में ढ़ालेंगे।
देख ज़रा आसेब सिफ़त ये मेरी गलियों की रौनक,
लोग जलेंगे किंदिलो से, रक्स करेंगे गा लेंगे।
दुनियां भर के ग़म रख छोड़े दुनियां ने इन आँखों में,
रोज़ छलकती आंखों में हम कैसे दर्द छुपा लेंगे।
प्यार,मोहब्बत,इश्क़,वफ़ा,इख़लास, रवादारी, चाहत,
इन साँपो को दूध पिला कर खुद हम दिल में पालेंगे।
मेरे अंदर का इक वहशी मार ही डालेगा मुझको,
लोगों का क्या लोग तो आकर आंसू चार बहा लेंगे।
मिश्रा का एक नाम मिला है फिकरे कसने वालों को,
देखें कब तक लोग ये आख़िर मेरा नाम उछालेंगे।
By-©विकास मिश्र
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