रिपोर्ट- अंकिता यादव
HIndi Diwas : हर साल 14 सितंबर को भारत में हिन्दी दिवस (Hindi Diwas) मनाया जाता है। हिन्दी के महत्त्व को रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। भारत (India) में 22 भाषाएं और उनकी 72507 लिपि हैं। एक ही देश में इतनी सारी भाषाओं और विविधताओं के बीच हिंदी एक ऐसी भाषा है, जो हिंदुस्तान को जोड़ती है। साथ ही यह दुनिया के अन्य देशों में बसे भारतीयों को भी एक दूसरे से जोड़ने का काम करती है। आज पूरी दुनिया में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही है। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है, लेकिन फिर भी मन में एक सवाल में हमेशा उठता है कि हिंदी भाषा की महत्ता बढ़ी तेजी से बढ़ रही है फिर भी आज तक इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा क्यों नहीं मिल पाया, आखिर क्यों अब तक हिंदी भाषा अपने उत्थान की राह देख रही, यह केवल राजभाषा बनकर ही रह गई है। चलिए कुछ तथ्यों के जरिए इस पर एक प्रकाश डालते है….
सबसे पहले जानते है हिन्दी राजभाषा कैसे बनी
बाबा साहब आम्बेडकर की अध्यक्षता वाली समिति में भाषा संबंधी क़ानून बनाने का ज़िम्मा नितांत अलग-अलग भाषाई पृष्ठभूमियों से आए दो विद्वानों को शामिल किया गया था। एक थे मंबई की सरकार में गृह मंत्री रह चुके कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जबकि दूसरे तमिलभाषी नरसिम्हा गोपालस्वामी आयंगर इन्डियन सिविल सर्विस में अफ़सर होने के अलावा 1937 से 1943 के दरम्यान जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री भी थे। इनकी अगुआई में भारत की राष्ट्रभाषा को तय किए जाने के मुद्दे पर हिन्दी के पक्ष और विपक्ष में तीन साल तक गहन वाद-विवाद चला।
आखिरकार मुंशी-आयंगर फ़ॉर्मूला कहे जाने वाले एक समझौते पर मुहर लगी और 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 के रूप में जो क़ानून बना उसमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा का दर्जा दिया गया। तभी से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाये जाने की शुरुआत भी हुई।
भारत के 43.63 प्रतिशत लोग बोलते है हिंदी
देखा जाए तो हमारे देश में भाषा का मसला ख़ासा पेचीदा रहा है, लेकिन तथ्य यह है कि हिन्दी देश में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। पिछली जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि भारत के 43.63 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं।
आज भी देख सकते है कि बाहर के राज्यों से आने वाले हमारे कई अफसरशाह आज ऐसे भी है, जो हिंदी नहीं जानते। कई हिंदी प्रदेशों के अधिकारी भी अभी तक हिंदी में काम करते समय सकुचाते हैं, जबकि उनकी सहायता के लिए उन्हीं के नीचे कुशल राजभाषा कर्मी मौजूद होते हैं। सरकारी दफ्तरों की बात तो दूर, आम आदमी के जीवन से संबंध रखने वाली ढेरों छोटी-छोटी जानकारियां तक हिन्दी में कहां मिलती हैं? कितनी हिंदी फिल्मों की नामावली हिंदी में मिलती है? इसके मुकाबले में यूरोप के छोटे-छोटे देशों तक में बिकने वाले सामान के डिब्बों पर जानकारी स्थानीय भाषा में होती है। वहां की फिल्मों की नामावली भी स्थानीय भाषाओं में होती है। वहां के कई देश तो हमारे कई बड़े जनपदों से छोटे हैं। हमारा एक-एक राज्य उन देशों से कहीं बड़ा है। फिर भी तमिल, कन्नड़, गुजराती, पंजाबी भाषाओं की बात तो छोड़िए पूरे देश की राजभाषा हिन्दी तक में यह सूचना उपलब्ध नहीं होती।
आज भी उत्थान की राह देख रही हिन्दी
कटु सत्य यह है कि हिंदी अभी तक हमारे देश में रोजगार की भाषा नहीं बन सकी है। वैसे इस पर लंबे तर्क-वितर्क किए जा सकते हैं। आज भले ही हम हिंदी दिवस मना रहे है, लेकिन सच यही है कि इतने वर्षों बाद भी हिन्दी एक ऐसी भाषा नहीं बन सकी है जो देश के बड़े हिस्से को स्वीकार्य हो और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी खरी उतर सके। हिंदी भाषा को भले ही आज महत्व दिया जा रहा है, इसका प्रसार वैश्विक पटल पर भी हो रहा है, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी हिंदी अपने उत्थान की राह देख रही है और बस राजभाषा बनकर ही रह गई है।