Sunday, December 15, 2024
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Oppenheimer : एक वैज्ञानिक जिसने आइंस्टाइन के आगाह करने के बाद भी बनाया परमाणु बम

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Oppenheimer : छह अगस्त 1945 की तारीख मानो दुनिया में हिरोशिमा बमबारी की भयावहता याद करने के लिए संगदिल समय पर पत्थर की लकीर की तरह खींच दी गई है, लेकिन यहाँ तक पहुँचने के इतिहास से बहुत कम लोग वाकिफ हैं। इतिहास के इन्हीं पलों को दृश्य रूप देती हुई क्रिस्टोफर नोलान निर्देशित फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ (Oppenheimer) दुनिया के तमाम थियेटरों में विगत 23 जुलाई को रीलीज़ की गई है जो काई बर्ड और मार्टिन जे शेर्विन द्वारा रचित सैधांतिक भौतिकी के वैज्ञानिक जे रोबर्ट ओपेनहाइमर की जीवनी ‘अमेरिकन प्रोमेथ्यूस’ पर आधारित बायोपिक है।

फिल्म के मूल कथानक में एक वैज्ञानिक के ज्ञान के क्रियान्वयन के उत्थान और व्यवस्था द्वारा किए गए उसके पतन का विवरण है, जिसके समानांतर चलती है ओपेनहाइमर द्वारा पहला एटम बम बनाये जाने तक की विकास यात्रा। अपनी स्क्रिप्ट में गहन शोध, दर्शन, मनोविज्ञान समाविष्ट करती हुई यह फिल्म इंसानी स्वभाव की त्रुटियां, विषमताएं और उनसे उपजा क्लेश प्रस्तुत करती है।

फिल्म का प्रारंभ ग्रीक माइथोलॉजी के पात्र प्रोमेथियस के उल्लेख से होता है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने देवताओं से आग चुराकर इंसानों को सौंप दी थी जिसके दंड स्वरूप उसे सालों तक सज़ा के तौर पर एक पर्वत से बाँध दिया गया था जहाँ रोज़ एक पक्षी आकर थोड़ा थोड़ा उसका जिगर खाता था।

फिल्म में विश्व युद्ध से लेकर विज्ञान की खोजों तक विगत सदी के अनेक प्रचलित ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख है. यदि आपने कक्षा दस तक इतिहास और विज्ञान भलीभांति पढ़ा हो तो आपको कई नाम जैसे नील्स बोर, हिसेनबर्ग, आइंस्टाइन, हिटलर आदि नोस्टेलजिक अनुभूति दे सकते हैं. इन सब परिचित नामों के बीच जे रोबर्ट ओपेनहाइमर ( J Robert Oppenheimer) का नाम आपके लिए भी नया होगा और संभवतः आप यह भी नहीं जानते होंगे कि उन्हें परमाणु बम का पिता कहा जाता है।

फिल्म में जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक ईमानदार वैज्ञानिक की तरह संवेदनशील है, वह जीनियस है, देश की सुरक्षा और राजनीति में उसकी साख है। यह सब उसने अपनी काबिलियत से 1927 से 1945 के लम्बे सफ़र में अर्जित किया है. लेकिन ओपेनहाइमर की विशेष बात यह है कि वह डिप्लोमेसी नहीं जानता, बेबाक बोलता है, प्रेम करता है, ईमानदारी से दुख व्यक्त करता है। किसी व्यक्ति को परखने की बुद्धि यद्यपि उसकी कम है इसलिए कुछ एक सार्वजनिक उपहास उसके साथ घटित होते हैं और पॉलिसी विरोधों के चलते उसके शत्रु भी पनप जाते हैं।

फिल्म चूंकि भूत और वर्तमान में समानांतर चलती है तो कुछ देर तक यह समझ नहीं आता कि आखिर किसी को ओपेनहाइमर से क्या दिक्कत हो सकती है आखिर उसने अमेरिका जैसे देश के लिए परमाणु बम के निर्माण जैसा महत्वपूर्ण और बड़ा काम किया है। फिल्म देखते हुए धीरे-धीरे देश की पॉलिटिकल व्यवस्था के दुरुपयोग, वैज्ञानिकों की मेंटल लिंचिंग, अपने देश के होनहारों के साथ हुए बर्ताव आदि के कई किस्से याद आने लगते हैं। फिल्म के दौरान लगातार याद आता है कि हमारे देश में भी अनेक वैज्ञानिक आत्महत्या करते हैं. सहज स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न मन में उभरता है कि क्या नौकरशाही के कारण उपजा ऐसा ही कोई घात उनके साथ भी होता होगा?

फिल्म में जहाँ एक ओर देश के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन है, वहीं मानवतावादी सोच के कारण उपजे एक वैज्ञानिक का अपराधबोध भी है. वह वैज्ञानिक परमाणु बम के परीक्षण या ट्रिनिटी टेस्टिंग में नाम कमा कर भी खुश नहीं है, उसे अपने हाथ हिरोशिमा नागासाकी के खून से रंगे नज़र आ रहे हैं। यहाँ अल्फ्रेड नोबेल याद आते हैं ऐसा ही कुछ भावनात्मक रूप से जिनके साथ भी घटित हुआ था।

फिल्म में रोबर्ट ओपेनहाइमर को हैल्यूसिनेटिंग ड्रामेटिक ड्रीम में जाते हुए दिखाई देने के कुछ दृश्य हैं जिनमे भविष्य में होने वाली किसी घटना या ध्वनि को सांकेतिक रूप से दर्शाया है। ऐसे ही एक दृश्य में हिरोशिमा के बाद एक सभा संबोधन के दौरान का दृश्य है जिसमे उपस्थित सदस्यों द्वारा पाँव पटकते हुए की जाने वाली फीट टैपिंग का दृश्य अद्भुत बन पड़ा है. वहीं उनके द्वारा होमसिक महसूस करने के एक दृश्य में एटम के टूटने के स्वप्न दृश्य भी अलग प्रभाव उपस्थित करते हैं।

यहूदी ओपेनहाइमर की मानवतावादी संवेदनाएं उसके नाज़ी भय से परे होकर जब हिरोशिमा और नागासाकी के बाद और अधिक कचोटने लगती हैं तब वह कमज़ोर पड़ने लगता है। इस तरह उसकी छवि प्रेसिडेंट ट्रूमेन के सामने धूमिल होती है और उसके शत्रुओं को उसे नीचा दिखाने का एक और मौका मिल जाता है. इसी सिलसिले में एक दृश्य में एटॉमिक एनर्जी काउंसिल का अध्यक्ष पूंजीपति लुईस स्ट्रास वैज्ञानिक ओपेनहाइमर पर तंज़ करता है कि जीनियस होना बुद्धि के आधिक्य का प्रमाण नहीं है।

फिल्म देखते हुए यह प्रतीत होता है कि फिल्म निर्माण का उद्देश्य मात्र न्यूक्लियर एटम बम के निर्माण की कहानी कहना नहीं है अपितु इससे ज्यादा कतिपय लोगों द्वारा ओपेनहाइमर के प्रति व्यक्तिगत प्रतिशोध की भावना का चित्रण इस फिल्म का मुख्य बिंदु माना जा सकता है। फिल्म में स्टेट मशीनरी का प्रयोग बहुत सफाई से किया गया है।

फिल्म बताती है कि अमेरिका के सुरक्षा सम्बन्धी निर्णयों में ओपेनहाइमर की बहुत धाक थी, जिसे पूरी सोची समझी साजिश के चलते गिराया गया. यह काम उसी लुईस स्ट्रास द्वारा किया गया जिसने विगत में कभी उसके प्रति चाटुकारिता प्रदर्शित करते हुए उससे संवाद किया था, यही नहीं वह उससे बहुत चाव से अपने बेटे बहू को भी मिलवाना चाहता था मानो वह व्यक्ति प्रदर्शन की कोई वस्तु या सेलेब्रेटी हो।

पूंजीपति लुईस स्ट्रास खुद को बार-बार ‘अ शू सेल्स मैन’ कहता है और वह अपने अवचेतन में खुद ही हीन भावना से ग्रस्त है, उसकी यह हीन भावना उसे ओपेनहाइमर को उसकी जगह दिखाने पर उकसाती है जिसमें वो सफल भी हो जाता है लेकिन सच देर से ही सही अपने हिस्से की ईमानदारी दिखाता है। ओपेनहाइमर की सामाजिक और राजनैतिक प्रतिष्ठा को गिराने की साजिश करने के कारण उसे सीनेटर का पद नहीं मिलता है। जॉन एफ़ केनैडी उसे वोट नहीं देते क्योंकि उसने अनैतिक काम किया था. सच की यही जीत अमेरिका को तत्कालीन समय में महान देशों की तरह स्थापित करती है।

फिल्म के एक दृश्य में हिरोशिमा नागासाकी बमवर्षा के बाद ओपेनहाइमर और आईंस्टाईन के बीच एक मुलाकात दिखाई जाती है। इसकी चर्चा लुईस स्ट्रास अक्सर बदले की भावना से करता है, इस बातचीत के बाद अपने गुस्से और ख्याल में खोए आईंस्टाईन लुईस स्ट्रास का संज्ञान लिए बिना आगे बढ़ जाते हैं जो कि एटॉमिक एनर्जी काउंसिल के उक्त आत्म मुग्ध चेयरमैन को बड़ी नागवार गुजरती है. उसे लगता है कि ओपेनहाइमर ने एंस्टाइन को उसके खिलाफ कुछ बोलकर भड़का दिया है। मुहावरे में हम इसे चोर की दाढ़ी में तिनका कह सकते हैं।

वास्तविकता यह है कि वैज्ञानिकों और रचनात्मक लोगों के पास इतना सोचने का फालतू समय ही नहीं होता कि वे किसी के विरुद्ध षड्यंत्र करते फिरें, ऐसा अक्सर राजनेता और सीनेटर बनने वाले करते हैं। आप सोचकर देखिए एक तारे की मृत्यु पर बेचैन ब्लैक होल का पेपर लिखने वाला एक वैज्ञानिक क्या किसी के खिलाफ षड्यंत्र करेगा।

फिर भी सभी को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता इसलिए कहा जा सकता है कि सभी वैज्ञानिक भी एक जैसे नहीं होते। इस फिल्म में यह बताया गया है कि किस तरह अपने हाइड्रोजन बम की योजना पर प्रभावशाली ओपेनहाइमर से कोई मदद या तवज्जोह न पाते देख टेलर अपना व्यक्तिगत हित साधने के लिए तथा उसका नाम खराब करने में लुईस स्ट्रास का साथ देता है।

फिल्म के आखिर में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ओपेनहाइमर ने आइंस्टीन से कहा था “जिसका डर था वही हुआ, उसके कारण वह चेन रिएक्शन संभव हो गई. जिससे अब सचमुच यह दुनिया एक दिन ख़त्म हो जायेगी.“

यहाँ चेन रिएक्शन यह शब्द फिल्म में एक श्लेष अलंकार की तरह प्रयोग किया गया है , जिसका एक अर्थ हिरोशिमा और नागासाकी पर हुई एटम बम की तबाही से है और दूसरा अर्थ रशिया और अमेरिका में चल रही न्यूक्लियर होड़ से है. यह बात भी स्पष्ट हो चुकी है कि परमाणु बम का प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त करने के लिए नहीं बल्कि उस बहाने से रशिया को नीचा दिखाने के लिए किया गया था. यह कोल्ड वॉर का आग़ाज़ था जिसका परिणाम हम सदी के उत्तरार्ध में देख सकते हैं।

फिल्म में वैज्ञानिक की पत्नी किट्टी को सशक्त एक्स कम्युनिस्ट स्त्री के रूप में दिखाया गया है जो घरेलू भी है लेकिन उसके पास पूरा सामाजिक और मानसिक स्पेस है और उसकी राय मायने रखती है। ओपेनहाइमर और किट्टी का एक बच्चा भी है जिसे संभालने की जिम्मेदारी पत्नी की है, इस वज़ह से उपजी उसकी चिड़चिड़ाहट भी फिल्म में दिखाई गई है. एक दृश्य में बच्चा बेतहाशा रो रहा है लेकिन इतने जीनियस परिवार को यह नहीं मालूम है कि बच्चे के साथ क्या करना है, यह भी एक इंसानी दुर्बलता है जो किसी भी संभ्रांत एकल परिवार में महसूस की जा सकती है. कहावत है कि एक बच्चे को पालने के लिए पूरे गाँव की आवश्यकता होती है, फिल्म में भी वैज्ञानिक इस सम्बन्ध में दूसरों का सहयोग लेता है।

फिल्म में बहुत खूबसूरत प्रेम दृश्य भी हैं जिनमे दैहिक और मानसिक प्रेम का मनोविज्ञान है. यहाँ ओपेनहाइमर की प्रेमिका जीन है जो अमेरिका की कम्युनिस्ट पार्टी की महत्त्वपूर्ण सदस्य भी है। इन दृश्यों में जीन का तपती आग सा होना और ओपेनहाइमर का उस पर पानी के छींटे सा गिरना बेहद सृजनात्मक सीक्वेंस है, लेकिन यह प्रेम संबंध ओपेनहाइमर के लिए जितना अहम था उतना ही कीमती भी।

फिल्म में दैहिक प्रेम के एक अंतरंग एवं शक्तिशाली दृश्य में ओपेनहाइमर की प्रेमिका जीन, ओपेनहाइमर को गीता का एक पृष्ठ खोल कर दिखाती है और पूछती है “यह क्या है?” उत्तर में वह कहता है, “यह संस्कृत में उद्धृत वाक्य हैं.“ वह कहती है कि, “क्या लिखा है पढ़ो.“ जवाब में वह गीता की पंक्ति उद्धृत करता है-

“Now I become a destroyer of worlds”.

ओपेनहाइमर के बारे में यह कहा गया है कि ग्रन्थ पढ़ने के लिए उसने संस्कृत सीखी थी.

यह बात महज़ संयोग नहीं थी ओपेनहाइमर के जेहन में यह बात अंत तक बनी रहती है. दोनों के बीच घटित होने वाले संवाद कहीं न कहीं यह प्रश्न भी उत्पन्न करते हैं कि जीन उसके जीवन में रशिया की तरफ उसका झुकाव बढ़ाने के लिए तो नहीं आई थी, कहीं वह यह तो नहीं चाहती थी कि ओपेनहाइमर अमेरिका के लिए न्यूक्लियर हथियार न बनाकर एक कम्यूनिस्ट देश के लिए बनाएं?

फिल्म में आगे के दृश्य में ओपेनहाइमर (Oppenheimer) अपनी प्रेमिका से संबंध विच्छेद कर पूरे मनोयोग से अपने मेनहट्टन प्रोजेक्ट में लग जाता है, लेकिन जीन की आत्महत्या उसे तोड़ देती है, जीन कभी भी फूलों के गुलदस्ते नहीं चाहती थी, वह ओपेनहाइमर को चाहती थी लेकिन अमेरिका के प्रति अपनी वैचारिक और भौतिक प्रतिबद्धता के कारण ओपेनहाइमर किसी कम्यूनिस्ट का नहीं हो सकता था। यह फिल्म बताती है कि रिश्तों में जिस तरह की मैच्योरिटी पश्चिम की फिल्में दिखाती हैं वह किस तरह उनके सामाजिक ताने बाने से आता है।

वैज्ञानिक शोध करते हैं और अपने सिद्धांत में भविष्य के घटनाक्रम की संभावना व्यक्त करते हैं लेकिन कभी-कभी यही घोषणा उनके भय का हिस्सा हो जाती है। फिल्म में इसी तरह की बात को ओपेनहाइमर के एंजाइटी अटैक्स के दृश्यों में दिखाया गया है। इस तरह हम देखते हैं कि आर्ट और अस्थेटिक्स का बोध पश्चिमी फिल्म निर्माताओं में अधिक है क्योंकि वे कला के सभी पक्षों का अध्ययन कर उसे समाहित करते हैं। अपने काम के प्रति उनका समर्पण सीखने योग्य है। फिल्म में ब्लैक एंड व्हाइट और कलर सीक्वेंस के कारण दर्शक को काल क्रम के बदलाव को समझने में आसानी होती है।

फिल्म के क्लाइमैक्स में ट्रिनिटी एक्सप्लोजन अर्थात बम के परीक्षण का दृश्य है जिसे बहुत विस्तार से बताया गया है। यह दिल थाम कर देखा जाने वाला दृश्य है, सांसे चल रही हैं और सैद्धांतिक फिजिक्स का वैज्ञानिक आंखें फाड़-फाड़ कर इस बम की व्यवहारगत भयावहता को देख रहा है। वह महसूस करता है कि उसके सिद्धांत ने कभी उसे इसकी प्रायोगिक भयावहता का एहसास नहीं कराया था।

फ़िल्म से एक दृश्य

फिल्म में बताया गया है कि आइंस्टाइन ने ओपेनहाइमर को इस परमाणु विध्वंस की परिकल्पना प्रस्तुत करते हुए आगाह भी किया था लेकिन वह महसूस करता है कि उसने ही कहीं न कहीं उनकी बात को कम आंका. ओपेनहाइमर चाहता तो भी उस राह पर आगे नहीं बढ़ सकता था लेकिन अंततः वह अपनी हारी हुई नियति लास अलामोस में खुद लिखने चला गया, उसे लगा मैं यदि परमाणु बम नहीं बनाऊंगा तो कल नाज़ियों के पास हाइजेनबर्ग की मदद से बनाया हुआ न्यूक्लियर बम होगा ही, और हिटलर के जर्मनी को देखते हुए यहूदियों के लिए वह अब कुछ नहीं करेगा तो कब करेगा, इन सारी अवधारणाओं में उलझा हुआ वह यहूदी वैज्ञानिक न्यू मेक्सिको और फिजिक्स को एकाकार करने के अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए लास अलामोस चल देता है। आगे की घटनाओं में जर्मनी की हार के बाद भी ट्रिनिटी टेस्ट किया जाता है। जापान के समर्पण की मुश्किलों का बहाना बनाकर यू एस राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन बमवर्षा करने का इतना क्रूर निर्णय लेते हैं जो विश्व इतिहास में मानवता पर किया गया सबसे बड़ा अपराध बन जाता है।

विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन और इतिहास को अपने भीतर समाविष्ट किए क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ओपेनहाइमर बहुत आसानी से समझ आने वाली फिल्म है। इसकी तह में वे सारी इंसानी सबलता या दुर्बलता निहित है जो किसी भी इंसान में पाई जाती है। फिल्म का चरम ट्रिनिटी टेस्टिंग सीन से होता है जिसका अच्छा खासा जिक्र इंटरनेट पर उपलब्ध है। वर्चुअल रियलिटी की दुनिया में क्रिस्टोफर नोलन रियल फिल्मांकन कर नए अनुभव रचने के लिए जाने जाते हैं। ट्रिनिटी का यह सीक्वेंस बहुत ही बढ़िया है जिसे हॉल में देखना एक अद्भुत अनुभव होगा।

लेखक- प्रज्ञा मिश्र की कलम से

जन्म स्थान- पूर्णिया, बिहार विवाहोपरांत मुंबई प्रवास
शिक्षा – हिंदी और कंम्प्यूटर एप्लीकेशन से स्नातकोत्तर
सम्प्रति – सूचना एंव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत

रचनात्मक गतिविधियां: Spotify एवं कम्युनिटी ऑडियो प्लेटफॉर्म पर shatdalradio पॉडकास्ट का संचालन।

सम्मान – बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन शताब्दी सम्मान 2019

प्रकाशन – विभिन्न साझा काव्य संग्रहों व पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन यथा ‘काव्यांकुर’ (2019) संपादक विभूति भूषण झा
‘इन्नर’ (2020) ‘प्रारंभ’ (2021)
‘धरती होती है मां’ , बोधि प्रकाशन (2022)
‘शतरंग’, समर प्रकाशन (2023)

ईमेल – pragyajha8@gmail.com


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