Sunday, December 15, 2024
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Varanasi : निर्भया दिवस पर दखल संगठन ने अस्सी घाट पर सांस्कृतिक प्रतिरोध संध्या का किया आयोजन

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वाराणसी : दख़ल संगठन द्वारा शुक्रवार को अस्सी घाट पर अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के समापन और निर्भया दिवस (Nirbhaya Diwas) के मौके पर सांस्कृतिक प्रतिरोध संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मैत्री ने अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा क्या है इस विषय में बताते हुए कहा कि 1960 के दशक में डोमिनिकन रिपब्लिक के तानाशाह शासक के खिलाफ तीन बहनों- पेट्रिया, मिनरवा और मारिया (मीराबेल बहनें) ने आवाज़ उठाई। 25 नवम्बर को तीनों बहनों को जिन्दा जलाकर हत्या कर दी गयी। 

1981 में नारीवादी समूहों ने इस दिन को महिलाओं पर होने वाली हिंसा के विरोध में अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। 1991 में 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक 16 दिवसीय अभियान मनाना शुरू किया गया। तभी से यह पखवाड़ा हर वर्ष ”महिलाओं पर हिंसा के विरोध में 16 दिवसीय अभियान” के नाम से मनाया जाने लगा है। जिसमें सरकार, संस्थाएं, संगठन एवं शिक्षण संस्थाएं इन 16 दिनों में लड़कियों-महिलाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सघन अभियान करते हैं।

इसके अलावा डॉ इन्दु पांडेय ने निर्भया दिवस के बारे में बताते हुए कहा कि 2012 में आज ही के दिन 23 साल की निर्भया से जघन्य सामूहिक दुष्कर्म करके निर्मम तरीके से उनकी हत्या की गयी थी। आरोपी पकड़े गए और फांसी की सजा हुई। तभी से 16 दिसंबर को निर्भया की स्मृति में महिला हिंसा के प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। 

वहीं नीति ने कहा कि आज हम महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा के समापन पर दखल संगठन की ओर से यह कहना चाहते हैं कि जब भी हम महिला हिंसा की बात करते हैं तो विधवा महिला, विकलांग महिला, सेक्स वर्कर, ट्रांस महिलाओं को भूल ही जाते हैं। सिर्फ समाज द्वारा निर्धारित महिला जेंडर में रहने वाली उन्हीं महिलाओं को ही ध्यान में रखते हैं जिनको समाज द्वारा संस्कारी शादीशुदा जीवन अपनाने वाली महिला को ध्यान में रखते हैं।

विधवा महिला, सेक्स वर्कर, दिव्यांग, ट्रांस महिला ऐसी तमाम कैटेगरी में रहने वाली महिलाओं के साथ जो हिंसा हो रही है गैर बराबरी हो रही है उन महिलाओं का क्या? उनके लिए बने कानून , उनके साथ हो रही हिंसा पर आवाज उठाने की जरूरत है। पितृसत्तात्मक सोच को खत्म करने की जरूरत है गैर बराबरी को हटाने की जरूरत है लिंग समानता लाने की जरूरत है।

महिला हिंसा के विभिन्न आयाम हैं। घरेलू से लेकर के कामगार महिला तक जाती, धर्म, अमीरी, गरीबी के सीमा से परे सभी उम्र की महिलाओ पर भेदभाव और हिंसा की घटनाए होती हैं। ऐसे विषयो पर कानून के साथ साथ समाज की अपनी जागरूकता और संवेदनशीलता भी जरूरी मांग है। इसको ध्यान में रखते हुए दखल संगठन ने जिले के स्कूल कॉलेजों में जागरूकता संवाद का आयोजन किया। समाजकार्य विभाग काशी विद्यापीठ , हरिश्चंद्र पीजी कॉलेज मैदागिन , विद्यापीठ गंगापुर परिसर और वसंता कॉलेज राजघाट में पिछले दिनों लघु फिल्मे दिखाकर छात्र छात्राओं के बीच चर्चा कराई गई। 
 
अनूठे तरह के रिपोर्ट को जारी करते हुए शालिनी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के दौरान बनारस से प्रकाशित होने वाले प्रमुख पांच अखबारों और पांच ऑनलाइन पोर्टलों का दखल ने अध्ययन किया है। पिछले 15 दिन के समाचारों से गुजरते हुए देखा गया कि क्या शहर क्या ग्रामीण इलाके, क्या अमीर क्या गरीब,क्या बूढ़ी क्या बच्ची या फिर काम करने वाली या घरेलू महिला , लगभग हर प्रकार के सामाजिक आर्थिक ढाँचे में रहने वाली महिला के साथ अपराध की घटनाएं हुई है।

उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं के खिलाफ प्रतिदिन औसत 4 से 5 हिंसा और अपराध की खबरें प्रकाश में आई हैं। ज्ञातव्य है कि रोजमर्रा के घरेलू भेदभाव और हिंसा की बहुतायात शिकायतें तो कभी सामने आ ही नहीं पाती। ये बात दिखा रही है कि समाचार में सामने आई घटनाएं दस गुनी होंगी। दर्ज हुई घटना को देखें तो इन 75 घटनाओं में से दहेज उत्पीड़न की तीन ,यौनिक हिंसा की चार , शारीरिक हिंसा की बीस , साइबर अपराध चार दर्ज हुए और मानसिक उत्पीड़न की घटनाए सात दर्ज हुई है। सर्वाधिक मामले बच्चो के रहे नाबालिग (पॉस्कों ) की छब्बीस घटनाएँ खबरों में रहीं। 

कम संसाधनों में बेहद साधारण सा अध्ययन आंखे खोलने वाला है। एक समाज के तौर पर हमें आगे बढ़ना है तो इन विषयों पर बहुत सचेत होकर अपनी कार्यवाहियों को तय करना होगा।

इस अवसर पर मैत्री, इन्दु और प्रतिमा ने नारीवादी चेतना के गीत गाए। वंदना, रेनी और शालिनी ने कविताओं के माध्यम से अपनी पीड़ा सामने रखी। कार्यक्रम के अंतर्गत जागरूकता गीत, कविता वक्तव्य और मोमबत्ती जलाकर स्मृति दिवस मनाया जाएगा।

बता दें कि, बनारस और आसपास के क्षेत्र में लैंगिक मुद्दों पर लगातार सक्रिय रह रहे संगठन दखल ने संध्या आयोजन से पूर्व पराड़कर भवन में पत्रकार वार्ता का आयोजन कर एक शोध अध्ययन जारी किया। सांस्कृतिक संध्या में प्रमुख रूप से इंदु, विजेता शालिनी, विजेता, विनय सिंह, नीति, मैत्री, शानू, रणधीर, राहुल, शिवांगी, दीक्षा, अनुज और ताहिर अंसारी, काजल शामिल रहे। 

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