कोलकाता। हर साल पूरी दुनिया में 29 अक्टूबर को ‘विश्व स्ट्रोक दिवस’ (World Stroke Day) मनाया जाता है। इस अवसर पर अपोलो मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल्स कोलकाता ने ब्रेन स्ट्रोक और इसके मरीजों की जान बचाने के बारे में लोगों को जागरूक किया। इस दौरान बताया गया कि ऐसे लोगों को उच्च रक्त शर्करा (हाई ब्लड शुगर), कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप (बीपी) की समस्या है उनमें ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा रहता है। पहले जहां 6 में से 1 लोगों को ब्रेन स्ट्रोक होने की संभावना रहती थी, जो बढ़ कर अब 4 में से 1 हो गई है। इस बदलाव का मुख्य कारण लोगों की खराब लाइफस्टाइल और खान-पान की आदतें हैं।
स्ट्रोक होने के 4.5 घंटे के अंदर उपचार शुरू करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बाद समस्या गंभीर हो सकती है, जिसमें मरीज के पूरी तरह पैरालिसिस या फिर मृत्यु तक की भी संभावना रहती है। स्ट्रोक के लक्षण देखने पर एक ‘कोड स्ट्रोक’ की जानकारी की जाती है, जो टीम को बगैर किसी देरी के मरीज का इलाज शुरू करने का संकेत देती है। रोगी को तुरंत ही सीटी स्कैन के लिए ले जाया जाता है और फिर उसके बाद आवश्यकतानुसार मेडिकल और क्लिनिकल ट्रीटमेंट किया जाता है।
इस मौके पर अपोलो मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल्स कोलकाता के न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ अमिताभ घोष ने कहा कि “ब्रेन स्ट्रोक दो प्रकार के होते हैं: इस्केमिक स्ट्रोक जिसमें मस्तिष्क के हिस्से में रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है, जिसकी वजह से मस्तिष्क के उस हिस्से का ऊतक (टिशू) सामान्य रूप से कार्य नहीं करता।
दूसरा रक्तस्रावी स्ट्रोक है, जिसमें मस्तिष्क के ऊतकों (टिशू), निलय (वेंट्रिकल्स) या दोनों में अचानक रक्तस्राव होता है। दोनों ही मामलों में यह मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है क्योंकि यहां रक्त की आपूर्ति नहीं होती है। लेकिन अब बेहतरीन इलाज उपलब्ध है। अगर निश्चित अवधि के अंदर इलाज शुरू किया जाता है, तो मस्तिष्क कोशिका को स्थायी क्षति से रोका जा सकता है। चार में से एक व्यक्ति को किसी भी समय स्ट्रोक की संभावना रहती है और जिसका इलाज न होने पर स्थायी विकलांगता या मृत्यु भी हो सकती है।
वहीं इसके अलावा अपोलो मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल्स के सीनियर कंसल्टेंट डॉ अरिजीत बोस, ने कहा कि “पहले स्ट्रोक के उपचार में केवल दवा और फिजियोथेरेपी शामिल थी लेकिन स्वास्थ्य सेवा में होने वाले तकनीकी विकास के साथ अब एंडोवास्कुलर थेरेपी यहां तक कि लार्ज वेसेल ऑक्लूजन को भी कैथ-लैब में संबोधित किया जा सकता है। क्लॉट को यांत्रिक रूप से हटाने की नई तकनीक के आगमन के साथ, यह उपचार लक्षण शुरू होने से कम से कम 6 घंटे तक और यहां तक कि 24 घंटे तक बहुत ही चुनिंदा रोगियों को इस उपचार का लाभ दिया जा सकता है।
इस नए उपचार में रोगी के कमर या कलाई में एक पिन होल के माध्यम से, रोगी के मस्तिष्क में थक्के की जगह तक पहुँचा जाता है और थक्के को या तो खींच कर निकाला जाता है या स्टेंट की मदद से हटा दिया जाता है। प्रक्रिया जितनी जल्दी शुरू की जाती है मरीज के ठीक होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।”
इस अवसर पर उपस्थित, डॉ. सुरिंदर सिंह भाटिया ने कहा कि “ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण काफी गंभीर होते हैं जिसमें संतुलन खोना, सिरदर्द या चक्कर आना, धुंधली दृष्टि, एक तरफ के चेहरे, हाथ या पैर का सही से काम ना करना, कमजोरी, बोलने में कठिनाई शामिल है। स्ट्रोक वाले किसी भी व्यक्ति की पहचान करना आसान है और ऐसी परिस्थिति में उस मरीज को तुरंत ही निकटतम 24 x 7 कैथ लैब समर्थित और न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरो-इंटरवेंशनिस्ट की टीम से लैस स्ट्रोक के लिए तैयार केंद्र में ले जाया जा सकता है। जहां दिल का दौरा एक मरीज की जान ले सकता है, वहीं ब्रेन स्ट्रोक से न सिर्फ एक मरीज की मौत हो सकती है बल्कि इससे जुड़ी विकलांगता के कारण एक परिवार की जान भी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि अपने नजदीकी स्ट्रोक के लिए तैयार केंद्र क बात में जानकारी रखें।