Journalist Vimal Yadav Murder Case : बिहार के अररिया जिले में बीते शुक्रवार की सुबह पत्रकार विमल यादव के घर में घुसकर कुछ अज्ञात लोगों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। सीने पर गोली लगने से यादव की मौके पर ही मौत हो गई। घटना के बाद पोस्टमार्टम स्थल पर भारी हंगामा मचा। पुलिस अधीक्षक और क्षेत्र के सांसद सहित पुलिस अधिकारी वहां मौजूद थे। विमल की हत्या ने बिहार के लॅा एंड ऑडर्र पर एक बार फिर से सवालिया निशान खड़ कर दिया है, क्योंकि बिहार में किसी पत्रकार की इस तरह हत्या कोई नई बात नहीं है। आज हम विमल यादव (Journalist Vimal Yadav Murder Case) से लेकर सुभाष कुमार महतो हत्याकांड तक कई पत्रकारों के बारे में बताएंगे जिनकी इस तरह से दिनदहाड़े हत्या हुई थी।
Journalist Vimal Yadav Murder Case : विमल यादव हत्याकांड
अररिया के एसपी अशोक कुमार सिंह के अनुसार, बिहार के अररिया के रानीगंज बाजार इलाके में दैनिक जागरण के पत्रकार विमल यादव को सुबह करीब 5.30 बजे चार लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार- विमल अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते थे। 18 अगस्त की सुबह करीब 5.30 बजे चार लोग आए और विमल के घर का मेन गेट खटखटाया जैसे ही विमल (Journalist Vimal Yadav) ने दरवाजा खोला आरोपियों ने उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी, जो विमल के सीने पर लगी। जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद हमलावर मौके से फरार हो गए।
छोटे भाई की भी हुई थी गोली मारकर हत्या
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 4 साल पहले अप्रैल 2019 में पत्रकार विमल यादव (Journalist Vimal Yadav) के छोटे भाई गब्बू यादव की भी हत्या हुई थी, जो बेलसरा पंचायत के सरपंच थे। गब्बू की हत्या का आरोप रुपेश नाम के शख्स पर लगा है, जो फिलहाल जेल में बंद है। परिवार वालों के अनुसार, इस केस का ट्रायल चल रहा है और विमल यादव इस केस के एकमात्र मुख्य गवाह थे और जानकारी के अनुसार उस पर गवाही बदलने का दबाव था। विमल के परिजनों का आरोप है कि जिसने गब्बू की हत्या करवाई है उसी ने विमल की भी हत्या करवाई है। आरोप लगाया कि सजा से बचने के लिए आरोपी ने विमल के हत्या की सुपारी दी।
राजदेव रंजन हत्याकांड
13 मई 2016 को सीवान बिहार के रहने वाले राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। राजदेव हिंदुस्तान डेली में पत्रकार थे, वो सीवान रेलवे स्टेशन से अपने ऑफिस जा रहे थे, तभी रात करीब आठ बजे कुछ बाइक सवार हमलावरों ने उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर उनकी हत्या कर दी। रंजन को गर्दन और सिर में गोली लगी थी, उसे पहले आंखों के बीच और गर्दन में गोली मारी गई थी। रंजन की बाद में अस्पताल में मौत हो गई थी।
उनकी मृत्यु को मीडिया कवरेज भी मिला था, राजदेव की मौत को पत्रकारिता के लिए खतरा बताया गया था। उन्हें राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ लिखने के लिए जाना जाता था। मीडिया में छपी जानकारी के अनुसार रंजन के हत्यारे सीवान में किसी गैंग के सदस्य बताए गए थे। वहीं खबरों के मुताबिक रंजन के परिजनों का कहना था राजदेव की हत्या के पीछे शहाबुद्दीन का हाथ है। रंजन के कई साथी पत्रकारों के अनुसार उन्हें पहले भी धमकी दी गई थी, ये भी बताया गया कि मोहम्मद शहाबुद्दीन ने कथित तौर पर एक हिट लिस्ट बनाई थी और रंजन का नाम उस लिस्ट में सातवें नंबर पर था।
2016 में दो पत्रकारों की गोली मारकर हत्या
बिहार में 12 नवंबर 2016 को 24 घंटे के दौरान दो अलग-अलग जगहों पर दो पत्रकारों की हत्या से हड़कप मच गया था। पहली घटना सासाराम के अमर टोला में और दूसरी दरभंगा के केवटगामा पंचायत की थी। पहली घटना में दैनिक भास्कर के स्थानीय पत्रकार रिपोर्टर धर्मेंद्र सिंह (35) को मोटरसाइकिल सवार तीन बदमाशों ने हत्या कर दी थी। पुलिस के अनुसार हमलावरों ने धर्मेंद्र सिंह के पेट में उस दौरान गोली मारी थी जब वह सड़क किनारे एक दुकान पर चाय पी रहे थे। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार घटना रोहतास जिले में अवैध उत्खनन इकाइयों पर रिपोर्टर के लेखों से जुड़ी बताई गई थी।
वहीं दूसरी घटना दरभंगा के केवटगामा पंचायत की थी। पत्रकार से ग्राम प्रधान बने रामचंद्र यादव को कुछ अज्ञात लोगों ने तब गोली मार दी जब रामचंद्र एक स्थानीय प्रखंड विकास अधिकारी से मिलने के बाद घर लौट रहे थे। कुशेश्वर स्थानीय पुलिस के अनुसार अपराधियों ने यादव की पीठ में गोली मारी थी, जिससे उनकी तुरंत मौके पर मौत हो गई थी। मृतक एक हिंदी अखबार में काम करते थे।
2018 में भोजपुर में दो पत्रकारों की हत्या
26 मई 2018 को बिहार के भोजपुर में दो पत्रकारों के हत्या ने सभी को सकते में डाल दिया था। जब पटना से करीब 80 किलोमीटर दूर भोजपुर में ग्राम परिषद के प्रमुख और उसके लोगों ने दैनिक भास्कर के लिए काम करने वाले पत्रकार नवीन निश्चल और उनके सहयोगी विजय सिंह की कार से कुचल कर हत्या कर दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक कार में मुखिया मोहम्मद हरसू और उनका बेटा मौजूद था।
बता दें कि, हरसू के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। हरसू का बेटा घटना के बाद से फरारा हो गया था और भीड़ ने गाड़ी को घेर लिया और आग लगा दी थी।
पत्रकार सुभाष कुमार महतो हत्याकांड
20 मई 2022 को बेगूसराय में सुभाष कुमार महतो हत्याकांड ने भी सभी को हैरान किया था। जब सुभाष अपने पिता और अन्य रिश्तेदारों के साथ शादी के रात्रिभोज में शामिल होने के बाद अपने घर के पास टहल रहे थे, तभी कुछ हमलावरों ने उन्हें गोली मार दी और मौके से फरार हो गए। उन्हें स्थानीय हॅास्पिटल ले जाया गया, लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
सुभाष कुमार महतो की हत्या के बारे में ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ में कहा गया कि बिहार के अधिकारियों को पत्रकार सुभाष कुमार महतो की हत्या की पूरी जांच करनी चाहिए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना चाहिए।
पीसीआई की रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों के मौत के आकड़े
भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 25 सालों में भारत में अबतक 90 पत्रकार मारे गए हैं। इन सभी मामलों में कई वर्गों के प्रभाव के चलते अपराधियों को कम सजा मिलती है। यह एक खतरनाक और चौंकाने वाला आंकड़ा है और राज्य में प्रेस की स्वतंत्रता पर एक सवालिया निशान खड़ा करता है।
फ्री स्पीच कलेक्टिव के लिए गीता सेशु की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार 2020 में 67 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और लगभग 200 पर शारीरिक रूप से हमला किया गया। असम, उत्तर प्रदेश समेत कश्मीर और बिहार पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक राज्य माने जाते हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट बताती है कि भारत में रिपोर्टिंग एक खतरनाक पेशा हो सकता है।
पिछले पांच सालों में इतने पत्रकार मारे गए
2021 में भारत में चार पत्रकारों की हत्या की गई। वहीं पिछले पांच सालों में कम से कम 18 पत्रकार मारे गए हैं। ये लिस्ट ग्रामीण या छोटे शहर के पत्रकारों से भरी हुई है। इनमें ज्यादातर हिंदी भाषी जर्नलिस्ट थे। जम्मू कश्मीर में मारे गए पत्रकारों में फ्रीलांसर पत्रकारों का नाम भी शामिल है जो ज्यादातर प्रिंट मीडिया में काम करते थे सैदान शफी और अल्ताफ अहमद फक्तू का नाम भी इसी लिस्ट में है।
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