India vs Bharat : इन दिनों देश के नए नाम (India vs Bharat) को लेकर काफी बहस छिड़ी हुई है। जहां एक ओर विपक्ष सरकार पर आक्रमक है, तो वहीं दूसरी ओर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने इसका खंडन किया है। अब नाम बदलेगा या नहीं ये तो बाद का विषय है, लेकिन क्या आपको पता है ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब देश का नाम बदलने को लेकर विवाद हुआ हो, इससे पहले भी ये मांग उठ चुकी है। आइए अब जानते है कि ऐसा कब-कब हुआ।
India vs Bharat : जानें कब-कब उठ चुकी है देश का नाम बदलने की मांग
इंडिया का नाम भारत (India vs Bharat) करने को लेकर भले ही आज देश में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। दरअसल, G20 की बैठक के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) की ओर से दिए जाने वाले डिनर के कार्ड में ‘प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ का इस्तेमाल किए जाने को लेकर ये विवाद बढ़ गया है। इस खबर के बाहर आने के बाद से विपक्ष पूरी तरह से केंद्र पर हमलावर हो गया है, लेकिन इतिहास पर नजर डाले तो पहले भी अलग-अलग समय पर देश का नाम बदलने को लेकर मांग उठती रही है। कांग्रेस के नेता इंडिया का नाम भारत करने की कयास के बीच मोदी सरकार पर लगातार हमलावर हैं, लेकिन आपको बता दें कि साल 2010 और 2012 में कांग्रेस के सांसद शांताराम नाइक ने इस मुद्दे पर दो प्राइवेट बिल पेश किए थे। जिसके जरिए उन्होंने संविधान से इंडिया शब्द पूरी तरह से हटाने का प्रस्ताव रखा था।
यही नहीं साल 2015 में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) भी इस मुद्दे पर प्राइवेट बिल पेश कर चुके हैं। इस बिल में उन्होंने संविधान में ‘इंडिया दैट इज भारत’ की जगह ‘इंडिया दैट इज हिंदुस्तान’ करने का प्रस्ताव रखा था।
सुप्रीम कोर्ट में भी उठ चुकी है देश का नाम भारत करने की मांग
देश का नाम भारत (India vs Bharat) करने की मांग को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया जा चुका है। सबसे पहले मार्च 2016 में याचिका की सुनवाई करते हुए देश का नाम इंडिया की जगह सिर्फ भारत करने की मांग को खारिज कर दिया था। उस वक्त तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा, भारत और इंडिया एक ही हैं, अगर आप भारत बोलना चाहते हैं तो वही बुलाइए लेकिन कोई इंडिया कहना चाहता है तो उसे इंडिया कहने दीजिए। इसके बाद दूसरी बार साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में ये मामला फिर पहुंचा। उस वक्त भी तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने याचिका खारिज करते हुए कहा था, भारत और इंडिया, दोनों ही नाम संविधान में दिए गए हैं, संविधान में देश को पहले ही भारत कहा जाता है।
संसद के विशेष सत्र में बिल ला सकती है सरकार
बता दें कि, केंद्र सरकार की ओर से 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। इस दौरान कई खास बिल संसद में पेश किए जाने की अटकले लगाई जा रही है। ऐसे में ये भी कयास लगाए जा रहे है कि इस दौरान संविधान से इंडिया शब्द को हटाकर भारत करना भी मोदी सरकार के एजेंडे में शामिल हो सकता है। इससे पहले वन नेशन वन इलेक्शन बिल को लेकर भी चर्चाएं तेज हैं, हालांकि संसद का आगामी विशेष सत्र का एजेंड क्या होगा, इसके बारे में कोई किसी भी प्रकार की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।
जानें कैसे हुई है भारत और इंडिया शब्द की उत्पत्ति?
अब बात करते है भारत और इंडिया शब्द की उत्पत्ति की, तो बता दें कि हमारे देश का नाम भारत रखे जाने का इतिहास प्राचीन काल और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। जिसकी कहानी ऋषभदेव के पुत्र भरत से जुड़ी हुई है। हिन्दू ग्रन्थ, स्कन्द पुराण (अध्याय-37 के अनुसार) “ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभ के पुत्र भरत थे। इधर कई और पुराण भी कहते हैं कि नाभिराज के पुत्र भगवान ऋषभदेव रहे और उनके बेटे भरत थे, वे चक्रवर्ती थे और उनका साम्राज्य चारों ओर फैला हुआ था। इनके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। यह वह कालखंड था जब भारत को भारतवर्ष, जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान, हिन्द, अल-हिन्द, ग्यागर, फग्युल, तियानझू, होडू जैसे कई अन्य नामों से भी पुकारा जाता रहा है।
वहीं दूसरी ओर, इतिहासकारों के अनुसार मध्यकाल में जब भारत में तुर्क और ईरानी आए तो उन्होंने सिंधुघाटी में प्रवेश किया। वे “स” का उच्चारण “ह” किया करते थे और इस तरह सिंधु को उन्होंने हिंदू पुकारा और आगे इसतरह से राष्ट्र का नाम हिंदुस्तान हो गया। यहां तर्क यही था कि भारतवासियों को उन्होंने हिंदू कहा और इस स्थान को हिंदुस्थान कहा।
भारत के इंडिया नामकरण के पीछे एक और कहानी है। भारत के इंडिया हो जाने का सारा गणित यहीं से शुरू होता है और इसके पीछे सिंधु नदी अपना काम करती है। सिंधु नदी का दूसरा नाम इंडस भी था जबकि सिंधु सभ्यता के चलते भारत की सिंधु घाटी की सभ्यता को एक और पुरानी सभ्यता युनान जो आज का ग्रीक है वे लोग इंडो या इंडस घाटी की सभ्यता कहा करते थे, ऐसे में इंडस शब्द लैटिन भाषा में पहुंचा तो यह इंडिया हो गया। बता दें कि लैटिन बड़ी पुरानी भाषा रही जो रोमन साम्राज्य की आधिकारिक भाषा थी।
भारत को भारत, इंडिया और हिन्दुस्थान के नाम से पूरा विश्व जानता हैं पर हमारी सीमा के नजदीक वाले देशों ने हमारा पुराना नाम यानी हिन्दुस्थान (हिंदुओ का स्थान) अपने दैनिक प्रयोग में जारी रखा। पारसी, यहूदी, ग्रीक इन राष्ट्रों ने भी हमे सदैव से सिंधु यानी हिन्दू के तौर पर ही पुकारा।
इधर, अंग्रेजों के आगमन के साथ ही उस समय हिंदुस्तान के रूप में चर्चित हमारा देश इंडस वैली यानी की सिंधु घाटी की सभ्यता के रूप में भी पहचाना जाता रहा। ऐसे में अंग्रेजों ने इसे इंडस वैली के लिए लैटिन में प्रयोग होने वाले इंडिया को ही हमारे देश का नाम दे दिया और ऐसे ही हमारे देश का नाम पड़ा इंडिया।
वहीं अब संविधान के अनुसार देश के नामकरण की बात करे तो बता दें कि संविधान बनने की प्रक्रिया जहां लंबी थी, वहीं यह कई तरह के मतभेदों के बीच चलती रही। संविधान सभा में भारत के नामकरण को लेकर बहस का लंबा दौर चला। कुछ सदस्य भारत को ‘भारत’ नाम रखने के प्रस्ताव पर अड़े थे तो वहीं कुछ कुछ सदस्य ‘भारतवर्ष’ नाम रखने के लिए प्रस्ताव रख रहे थे जबकि कुछ सदस्य ‘हिन्दुस्तान’ नाम रखने पर विचार कर रहे थे।
बहस में एक से एक धुरंधरों शामिल थे, जिसमें सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, श्रीराम सहाय, हरगोविंद पंत और हरि विष्णु कामथ जैसे नेता भिड़े हुए थे। हरि विष्णु कामथ ने सुझाव दिया था कि भारत को भारत या फिर इंडिया के रूप में बदल दिया जाए, लेकिन आखिर में इस प्रस्ताव के पक्ष में बहस करते हुए, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था- ‘इंडिया’ नाम एक अंतरराष्ट्रीय नाम है, जिसे पूरे देश में जाना जाता है और यह नाम भारत के विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को भी दर्शाता है। लिहाजा इंडिया भारत का वह नाम हो गया जो पूरे विश्व में जाना गया।
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संविधान में दिया हुआ नाम गलत लग रहा है इंडिया तुम तो उसे जगह पर हो जो संविधान भी बदल देगा पता भी नहीं चले
क्या इंडिया हिंदुस्तान भारत हिंद कितने नाम सही लग रहे हैं की किताबें भाषा अब हम भारत ही केवल देखेंगे
मैं मानता हूं कि भारत नाम होना चाहिए मगर किताबों से नहीं दिल में जो बस है भारत वही मेरा भारत है
शर्म तो उनको करना चाहिए जो केवल नाम के पीछे पड़े हैं जगह-जगह का शुरू से देखते हुए आ रहे हैं कभी यह नहीं कहते हैं कि महंगाई इतनी बढ़ गई है इस पर कुछ किया जाए रोजगार नहीं मिल रहा है रोजगार लगाया जाए लेकिन जो फालतू बकवास है वही किया जा रहे हैं
नाम ही बदलोगे दूसरे के काम भी बदलोगे अपना बताओगे कुछ काम
सियासी डोर गुमराह करने की कोशिश