Akshaya Tritiya 2024 : हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूरे देश में अक्षय तृतीया का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया जप, तप, ज्ञान, स्नान, दान, होम आदि अक्षय रहते है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व पड़ता है। मान्यता है कि इस दिन किसी भी शुभ कार्य करने के लिए पंचाग देखने की जरूरत नहीं है। अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya 2024) को जहां एक ओर शुभ मुहूर्त और शुभ खरीदारी से जोड़ कर देखा जाता है। वहीं दूसरी ओर इस पर्व का एक कड़ी वृन्दावन से भी जुड़ी हुई है। दरअसल, इस दिन साल में बस एक बार वृन्दावन के स्वामी श्री बांके बिहारी (Banke Bihari Temple Vrindavan) के चरणों के दर्शन होते हैं।
साल में एक बार ही होते है बिहारी जी के चरणों के दर्शन
माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya 2024) के दिन प्रभु के चरणों के दर्शन करता है उसके घर में धन का कभी भी अभाव नहीं होता और धन से जुड़ी सारी विपदाएं दूर हो जाती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों सिर्फ साल में एक बार होते हैं श्री बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन।
श्री बांके बिहारी के चरण दर्शन का रहस्य
यह कथा भक्तिकाल की है जब स्वामी हरिदास भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) के परम भक्त के रूप में जाने जाते थे। स्वामी हरिदास जी के पास धन का अभाव था वे अत्यंत ही दरिद्र थे लेकिन प्रभु की भक्ति में कभी कोई कसर नहीं छोड़ते थे। वे हमेशा ही उनसे लाड लड़ाते रहते थे और ऐसा करते समय वो अपना सुध-बुध खो बैठते थे। ऐसे में जब एक बार श्रीबांके बिहारी जी का वृन्दावन धाम में प्रागट्य हुआ तो हरिदास जी के भक्तिभाव को दखते हुए उन्हें ही श्री बांके बिहारी की सेवा का कार्यभार सौंपा गया।
हरिदास जी के प्रेम भाव को देख ठाकुर जी ने दिखाया चमत्कार
स्वामी हरिदास जी खुद भी अपना गुजारा जैसे तैसे करते थे ऐसे में ठाकुरजी की सेवा की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आ गई। प्रचलित कथाओं के अनुसार, श्री बांकें बिहारी अंतरयामी हैं उनकी परिस्थिति से अवगत थे इसलिए उन्होंने हरिदास जी के मन में अपने प्रति प्रेम भाव को देखते हुए एक चमत्कार दिखाया, जिसके अनुसार, जब भी स्वामी जी भोर में उठकर प्रभु के चरणों में नमन करते तो उन्हें ठाकुरजी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा मिलती। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा. स्वामीजी भी समझ गये की ये प्रभु की कृपा और उनकी अपार लीला ही है, लेकिन उन्हें साथ ही ये भी डर सताने लगा कि अगर किसी को भी प्रभु इस चमत्कार का पता चला तो कहीं प्रभु की मूर्ती चोरी न हो जाए।
इसलिए उन्होंने प्रभु के चरणों को वस्त्र से ढकना शुरू कर दिया। बस तभी से ये परंपरा चली आ रही है कि केवल साल में अक्षय तृतीया के दिन ही भक्त श्री बांके बिहारी के चरणों के दर्शन कर सकते हैं।
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