Friday, September 20, 2024
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Maa Laxmi Temple : सोने की नगरी में विराजमान है देवी लक्ष्मी, धनतेरस के दिन भक्तों में बटता है मां का खजाना

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Maa Laxmi Temple : वैसे तो भारत में कई ऐसे मंदिर है जो अपने आप में काफी अद्भुत और रहस्यमयी है, जिनके साथ कोई न कोई पौराणिक कथा व मान्यताएं जुड़ी हुई है। लेकिन आज हम आपको ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जहां भक्तों को प्रसाद के रुप में मिठाई, मिश्री या कोई अन्य भोग की चीजें नहीं बल्कि चांदी, सोने के आभूषण दिए जाते हैं। इतना ही नहीं इस मंदिर की सजावट फूल-मालओं से नहीं बल्कि करेंसी नोटों से की जाती है। ये मंदिर हजारों साल पुराना हैं, जिसका कपाट साल में बस एक ही बार धनतेरस के दिन श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। आइए जानते है कि ये मंदिर कहां स्थित है और इससे जुड़ी क्या-क्या विशेषताएं है….

सोने की नगरी में स्थित है यह मंदिर

हम जिस मंदिर की बात कर रहें है, वो महालक्ष्मी का मंदिर हैं, जो मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में मानक चौक पर स्थित है। बता दें कि रतलाम शहर को सोने की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में दिवाली के दिन एक विशेष मेले का आयोजन किया जाता है इस दौरान माता लक्ष्मी के दरबार को बड़ी खूबसूरती से नकदी, सोने-चांदी के सिक्कों, गहनों और अन्य कीमती सामनों से सजाया जाता है।

यह भी पढ़ें-भारत का एक ऐसा चमत्कारिक मंदिर, जहां देवी की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना स्वरूप

भक्तों को प्रसाद के तौर पर दिए जाते है आभूषण

महालक्ष्मी के दरबार में आने वाले भक्तों को प्रसाद के रूप में आभूषण और पैसे दिए जाते हैं। वहीं इस दरबार में आने वाले भक्त भी मां लक्ष्मी को प्रसाद के रूप में आभूषण और नकद चढ़ाते हैं। दिवाली के दिन इस मंदिर के कपाट 8 घंटे खुले रहते हैं और धनतेरस के दिन कुबेर का दरबार देखा जाता है। इस मंदिर में धनतेरस से पांच दिनों तक यह पर्व मनाया जाता है। कुबेर का यह दरबार सोने-चांदी के आभूषणों से दीपोत्सव के दौरान भर जाता है।

कुबेर देवता की भी होती है पूजा

भक्त इस मंदिर में न केवल महालक्ष्मी की पूजा करने आते हैं बल्कि कुबेर देवता की पूजा करने भी आते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में धनतेरस के दिन खुलने वाले इस मंदिर के कपाट भाई दूज के दिन बंद कर दिए जाते हैं।

महिलाओं को दिया जाता है कुबेर का थैला

लक्ष्मीजी के मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस दिन भक्त यहां पूजा कर दीप जलाते हैं। मंदिर को न केवल फूलों से, बल्कि भक्तों द्वारा चढ़ाए गए आभूषणों और धन से भी सजाया जाता है। इस दौरान मंदिर में आने वाली महिलाओं को कुबेर का थैला भी दिया जाता है। कहा जाता है कि यहां रहने वाले एक राजा ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। यह परंपरा तब से चली आ रही है जब राजा राज्य की समृद्धि के लिए मंदिर में धन और गहने चढ़ाए जाते थे। तब से भक्त माता को आभूषण और धन चढ़ाते हैं और इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

धन-आभूषण का चढ़ाने वाले भक्तों पर बनी रहती है मां लक्ष्मी की कृपा

ऐसा माना जाता है कि मंदिर में धन और आभूषण चढ़ाने वाले भक्तों के घर में मां लक्ष्मी की कृपा रहती है। यही कारण है कि दूर-दूराज से लोग इस मंदिर में आते हैं और कीमती सामान चढ़ाते हैं।

धन हो जाता है दोगुना

वहीं धनतेरस के दिन देवी महालक्ष्मी की पूजा होती है, रतलाम ही नहीं, बल्कि आसपास के लोगों का भी मानना ​​है कि महालक्ष्मी मंदिर में सजावट के लिए लाए गए गहने और पैसे घर को सुख-समृद्धि से भर देते हैं और एक साल में धन दोगुना हो जाता है। धनतेरस से आठ दिन पहले महालक्ष्मी मंदिर की साज-सज्जा शुरू हो जाती है। इस दौरान लोग सोने-चांदी के सिक्के लेकर भी यहां पहुंचते हैं।

नोटों से सजाया जाता है मां का दरबार

मां का यह दरबार नोटों से सजाया जाता हैं, जहां भक्त सोने-चांदी के आभूषणों और नोटों की गठरी लेकर माता लक्ष्मी के मंदिर में पहुंचते हैं। उनका प्रवेश मंदिर ट्रस्ट द्वारा दिया जाता है और टोकन जारी किए जाते हैं। इसके बाद सभी आभूषण और नोटों के बंडल मंदिर में विराजमान देवी महालक्ष्मी को समर्पित किए जाते हैं। बाद में सभी टोकन भक्तों को ही लौटा दिए जाते हैं।

सदियों से चली आ रही परंपरा

देवी लक्ष्मी के इस मंदिर में सोने, चांदी और नोटों के बंडल चढ़ाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां आने वाले भक्त जो भी ताबीज और नगदी मां के चरणों में चढ़ाते हैं। फिर इसे उन्हें प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इसके अलावा अक्षत कुमकुम, श्रीयंत्र, सिक्के, गाय और कुबेर पोटली भी श्रदधालुओं को प्रसाद के रूप में दी जाती है।

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