भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। कहा जाता है कि जहां पर गणपति जी की कृपा होती है, वहां कभी अमंगल नहीं होता। गणपति को विघ्नहर्ता कहा जाता है, वे व्यक्ति की उन्नति और उसके कार्यों के बीच आ रही बाधाओं को दूर करते हैं। ऐसे में उसके जीवन की तमाम परेशानियों का अंत होता है और जीवन में शुभता आती है। आज 3 जून गुरुवार को विनायक चतुर्थी है। इस मौके पर हम आपको गणपति जी के आठ प्रमुख रूपों के बारे में बताएंगे, जिनका जिक्र मुद्गल पुराण में भी किया गया है। ये आठ रूप गणपति ने असुरों के नाश के लिए धारण किया था। जानिए गणपति के आठ रूपों की महिमा।
वक्रतुंड : भगवान गणेश का पहला स्वरूप वक्रतुंड है। गणपति ने ये रूप मत्सरासुर का अहंकार भंग करने के लिए धारण किया था।
एकदंत : गणपति का दूसरा रूप एकदंत के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस रूप में उन्होंने मदासुर को पराजित किया था।
महोदर : तीसरे स्वरूप महोदर के नाम से जाना जाता है। महोदर के रूप में गणपति ने मोहासुर नाम के असुर राक्षस का अंत किया था। गणपति का ये रूप ज्ञान का स्वरूप भी कहलाता है।
गजानन : गणपति का चौथा रूप गजानन कहलाता है। इस रूप में उन्होंने भगवान गणेश ने लोभासुर के अहंकार को भंग किया था।
लंबोदर : भगवान गणेश के पांचवे रूप को लंबोदर के नाम से जाना जाता है। इस रूप में भगवान गणेश ने क्रोधासुर को परास्त किया था। गणपति का ये रूप शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
विकट : विनायक के छठे अवतार को विकट रूप कहा जाता है। उन्होंने इस अवतार में कामासुर को परास्त किया था। कामासुर को त्रिलोक पर विजय प्राप्त करने का वरदान प्राप्त था।
विघ्नराज : भगवान गणेश का सातवां स्वरूप विघ्नराज है। ये अवतार गणेश भगवान ने ममतासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए लिया था। ये अवतार विष्णु ब्रह्म का वाचक है तथा शेषवाहन पर चलने वाला है।
धूम्रवर्ण : भगवान गणेश का आठवां और अंतिम प्रमुख अवतार है धूम्रवर्ण। गणपति ने ये अवतार अहंतासुर नाम के दैत्य से देवताओं समेत पूरे ब्रह्मांड को मुक्त कराने के लिए लिया था।