Unique Rituals : हम सभी शुरु से ऐसा सुनते आ रहे है कि बेटियां पराया धन होती है एक दिन उन्हें शादी कर विदा होकर अपने सुसराल जाना है, लेकिन जरा सोचिए अगर हम कहे की बेटी नहीं बेटो को विदा होकर ससुराल जाना है। शायद ये बात सुनकर आप भी सोच रहे होंगे कि हम ये क्या अजीबो-गरीब बात कह रहे है, लेकिन ऐसा ही है। दरअसल, आज हम आपको एक ऐसे ही समुदाय के बारे में बताएंगे जहां दुल्हन की नहीं दुल्हें की विदाई होती है, वो अपना घर छोड़कर दुल्हन के साथ ससुराल जाते है। आइए जानते है कि ये कौन सा समुदाय है और यहां क्यों ये उल्टा रिवाज (Unique Rituals) है…
जानें कौन सा समुदाय है
जैसा कि हम सभी जानते है भारत में विभिन्न धर्मों और समाज में विवाह (Wedding) के अलग-अलग रीति-रिवाज होते है। इनमें से कई समुदाय ऐसे होते है, जिनके रीति-रिवाज व प्रथाएं काफी अजीबो-गरीब होती है। ठीक इसी तरह भारत में मेघालय, असम और बांग्लादेश के कुछ इलाकों में रहने वाली खासी जनजाति (Khasi Tribe) है, इनके रीति-रिवाज बिल्कुल अलग है। इस जनजाति में शादी के वक्त बेटे की विदाई की जाती है।
जायदाद लड़कों के बजाय लड़कियों को मिलती है
बता दें कि खासी जनजाति (Khasi Tribe) में शादी के वक्त बेटों को बेटियों के मुकाबले ज्यादा अहमियत दी जाती है। खासी जनजाति में शादी के बाद लड़के लड़कियों के साथ ससुराल जाते हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो लड़कियां जीवनभर अपने माता-पिता के साथ रहती है, जबकि लड़के अपना घर छोड़कर ससुराल में घर जमाई बनकर रहते हैं। इसे खासी जनजाति में अपमान की बात नहीं माना जाता है। इसके अलावा खासी जनजाति में बाप-दादा की जायदाद लड़कों के बजाय लड़कियों को मिलती है।
छोटी बेटी को मिलती है ज्यादा संपत्ति
वहीं एक से ज्यादा बेटियां होने पर सबसे छोटी बेटी को जायदाद का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलता है। वहीं खासी समुदाय में सबसे छोटी बेटी को विरासत का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलने के कारण उसे ही माता-पिता, अविवाहित भाई-बहनों और संपत्ति की देखभाल करनी पड़ती है।
महिलाओं को कई शादी करने की छूट
खासी जनजाति में महिलाओं को कई शादियां करने की भी छूट मिली हुई है, हालांकि यहां के पुरुषों ने कई बार इस प्रथा को बदलने की मांग की है। उनका कहना है कि वे महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहते और ना ही उनके अधिकार कम करना चाहते हैं, लेकिन वे अपने लिए बराबरी का अधिकार चाहते हैं। खासी जनजाति में परिवार के सभी छोटे-बड़े फैसलों में महिलाओं का होता है।
इसके अलावा इस समुदाय में छोटी बेटी का घर हर रिश्तेदार के लिए हमेशा खुला रहता है। छोटी बेटी को खातडुह कहा जाता है। मेघालय की गारो, खासी, जयंतिया जनजातियों में मातृसत्तात्मक व्यवस्था होती है, इसलिए इन सभी जनजातियों में एक जैसी व्यवस्था होती है।
शादी के लिए नहीं होती कोई खास रस्म
खासी समुदाय में विवाह के लिए कोई खास रस्में नहीं होती है। लड़की और माता पिता की सहमति होने पर लड़का ससुराल में आना-जाना और रुकना शुरू कर देता है। इसके बाद उनके बच्चे होते ही लड़का स्थायी तौर पर अपने ससुराल में रहने लगता है। कुछ खासी लोग शादी करने के बाद विदा होकर लड़की के घर रहना शुरू कर देते हैं। शादी से पहले बेटे की कमाई पर माता-पिता का और शादी के बाद ससुराल पक्ष का अधिकार होता है। वहीं शादी तोड़ना भी यहां काफी आसान होता है, लेकिन तलाक के बाद संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं होता है।
बच्चों का सरनेम में होता है मां का नाम
बता दें कि खासी समुदाय में बच्चों का सरनेम भी मां के नाम पर रखा जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि काफी पहले इस समुदाय के पुरुष युद्ध पर चले गए थे, जिसके बाद पीछे महिलाएं घरों में रह गई थी। इस कारण से महिलाओं ने अपने बच्चों को अपना नाम दे दिया था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ये परंपरा इसलिए शुरू हुई थी क्योंकि खासी महिलाओं के कई जीवनसाथी होते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बच्चे का पिता कौन है? इस कारण महिलाओं ने बच्चों को पिता की जगह अपने सरनेम देना शुरू कर दिया था।
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