Ganesh Chaturthi : इन दिनों पूरे देश में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) की धूम है, गणपति बाबा के दर्शन को देशभर के गणेश मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। इस उत्सव पर हम आपको एक ऐसे ही गणेश मंदिर (Lord Ganesha Temple) के बारे में बताएंगे, जहां बड़े ही अनोखे तरीके से भक्त अपनी मुराद भगवान तक पहुंचाते हैं, जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। तो आइए जानते है ये कौन सा मंदिर है और यहां भक्त किस तरह अपनी मिन्नतें भगवान तक भेजते है।
यहां स्थित है मंदिर
दरअसल, हम जिस गणेश मंदिर की बात कर कर रहे है, वो रणथंभौर राजस्थान में स्थित है। यहां भगवान गणेश त्रिनेत्र रुप में विरजामन है, उनकी तीन नेत्र है। इस मंदिर में भक्त भगवान को चिट्ठी लिखकर अपनी सारी मन की बातें और मुरादे भेजेते है। यहां लाखों की संख्या में चिट्ठियां आती हैं। भक्त हर शुभ कार्य से पहले गणपति जी को चिट्ठी भेजकर निमंत्रण देते है।
ऐसे बने त्रिनेत्र गणेशजी
देश में चार स्वयंभू गणेश मंदिर हैं जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश (Trinetra Ganesh Temple of Ranthambore) जी प्रथम हैं। रणथम्भौर त्रिनेत्र गणेशजी का मंदिर प्रसिद्द रणथम्भौर टाइगर रिज़र्व एरिया में स्थित है, इसे रणतभँवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फ़ीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्यांचल की पहाड़ियों में स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए बहुत सीढियां चढ़नी पड़ती हैं।
इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान हैं, जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। गजवंदनम चितयम नामक ग्रंथ में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णंन किया गया है। मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी के रूप में गणपति को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की समस्त शक्तियां गजानन में निहित हो गईं और वे त्रिनेत्र बने।
कैसे हुई मंदिर की स्थापना
गणपति जी के इस मंदिर की स्थापना रणथंभौर के राजा हमीर ने 10वीं सदी में की थी। ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के समय गणेश जी राजा के सपने में आए और उन्हें आशीर्वाद दिया और राजा युद्ध में विजयी हुए। इसके बाद राजा ने अपने किले में गणेश जी के मंदिर का निर्माण करवाया। यहां भगवान गणेश की मूर्ति में तीन आंखें हैं। यहां पर भगवान गणेश जी अपनी पत्नी रिद्धि, सिद्धि और अपने पुत्र शुभ-लाभ के साथ विराजमान हैं। गणपति का वाहन चूहा भी साथ में है। यहां गणेश चतुर्थी पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और बड़े ही धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है।
डाक द्वारा भगवान को भेजते है चिट्ठी
इस मंदिर में किसी भी शुभ कार्य से पहले लोग डाक द्वारा चिट्ठियां भेजते हैं। कार्ड पर पता लिखा जाता है- ‘श्री गणेश जी, रणथंभौर का किला, जिला- सवाई माधौपुर (राजस्थान)। डाकिया के द्वारा भी इन चिट्ठियों को पूरी श्रद्धा और सम्मान से मंदिर में पहुंचा दिया जाता है। चिट्टी जब मंदिर में पहुंच जाती हैं तब पुजारी जी चिट्ठियों को भगवान गणेश के सामने पढ़कर उनके चरणों में रख देते हैं। ऐसा कहा जाता ही कि है कि इस मंदिर में भगवान गणेश को निमंत्रण भेजने से सारे काम सफल हो जाते हैं।
रोचक हैं ये किवदंतियां
रणथम्भौर त्रिनेत्र गणेश को लेकर यहां के लोगों में कई प्रकार की किवदंतियां प्रचलित है। स्थानीय लोगों का मानना है कि भगवान शिव ने जब गणेशजी की बाल्य अवस्था में उनका शीश काटा था तो उनका शीश यहाँ आकर गिरा था, तब से ही यहाँ भगवान गणेश के बालरूप की पूजा की जाती है। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में लीलाधारी श्री कृष्ण का विवाह रुक्मणी से हुआ था, विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए। गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे-पीछे सब जगह खोद दिया। श्री कृष्ण को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया।
जहां पर कृष्ण जी ने गणेशजी को मनाया वह स्थान रणथंभौर था। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान राम ने अपनी सेना सहित लंका प्रस्थान से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। ये भी माना जाता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे।
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