Tuesday, September 17, 2024
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Rakshabandhan 2024 : भारत का ऐसा गांव जहां भाईयों की कलाई रहती है सूनी, नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन

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Rakshabandhan 2024: रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है, यह पावन त्योहार हर साल श्रावण मास के शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। भारत में इस त्योहार को लोग काफी धूम-धाम से मनाते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव (Village) के बारे में बताने जा रहे, जहां रक्षाबंधन के दिन भी भाईयों की कलाई सूनी रहती है। इस गांव के लोग रक्षाबंधन ((Rakshabandhan 2024) का त्योहार नहीं मनाते है, बल्कि इस दिन को काला दिन (Black Day) के रुप में मानते हैं। जी हां सुनकर चौंक गए न लेकिन ऐसा ही है। आइए जानते हैं आखिर वो कौन सा गांव है और क्या कारण है कि लोग रक्षाबंधन नहीं मनाते है…

Rakshabandhan 2024 : यहां स्थित है वो गांव

दरअसल, हम जिस जगह की बात कर रहे वो उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गाजियाबाद से 30 किलोमीटर दूर स्तिथ मुरादनगर का सुराना गांव है। यहां 12वीं सदी से ही लोग रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं। इस गांव की बहू तो अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, लेकिन इस गांव की लड़कियां रक्षाबंधन (Rakshabandhan 2024) का त्योहार नहीं मनाती। इतना ही नहीं इस गांव के लोग यदि कहीं दूसरी जगह भी जाकर बस जाते हैं तो वह भी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं। गांव के लोग इस दिन को काला दिन भी मानते हैं।

छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का है गांव

सुराना गांव पहले सोनगढ़ के नाम से जाना जाता था। सुराना एक विशाल ठिकाना है छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का। राजस्थान के अलवर से निकलकर छाबड़िया गोत्र के अहीरों ने सुराना में छोटी सी जागीर स्थापित कर गांव यह बसाया। ग्राम का नाम सुराना यानी ‘सौ’ ‘राणा’ शब्द से मिलकर बना है। ऐसा माना जाता है कि, जब अहीरों ने इस गांव को आबाद किया तब वे संख्या में सौ थे और राणा का अर्थ होता है योद्धा, इसीलिए उन सौ क्षत्रीय अहीर राणाओं के नाम पर ही इस ठिकाने का नाम सुराना पड़ गया।

इन दिन को मानते है अशुभ

गांव की कुल आबादी 22 हजार के करीब है, इसमें अधिकतर निवासी रक्षाबंधन (Rakshabandhan 2024) का त्योहार नहीं मनाते, क्योंकि वह छाबड़िया गौत्र से हैं और वह इस दिन को अपशगुन मानते हैं। हालांकि जो लोग बाद में यहां रहने आए वह भी गांव की इस परंपरा को मानने लगे हैं। इसके साथ ही गांव में हर घर से एक व्यक्ति सेना या पुलिस में अपनी सेवा दे रहा है और हर साल उनके हाथों की कलाई सुनी रह जाती है।

पूरा गांव इसलिए नहीं मनाता रक्षाबंधन

ग्रामीणों के अनुसार छाबड़िया गौत्र के कोई भी व्यक्ति रक्षाबंधन (Rakshabandhan 2024) का त्योहार नहीं मनाता है। सैकड़ों साल पहले राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह राणा ने हिंडन नदी के किनारे डेरा डाला था। जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते हैं, तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला कर औरतों, बच्चों, बुजुर्ग और जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया।

मोहम्मद गोरी ने कई बार किए आक्रमण

गांव के लोगों के मुताबिक, इस गांव में मोहम्मद गोरी ने कई बार आक्रमण किए, लेकिन हर बार उसकी सेना गांव में घुसने के दौरान अंधी हो जाती थी, क्योंकि देवता इस गांव की रक्षा करते थे। वहीं रक्षाबंधन के दिन देवता गंगा स्नान करने चले गए थे, जिसकी सूचना मोहम्मद गौरी को लग गई और उसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया था।

दोबारा ऐसे बसा गांव

गांव निवासियों का कहना है कि सन 1206 में रक्षाबंधन (Rakshabandhan 2024) पर राखी के दिन हाथियों द्वारा मोहम्मद गौरी ने गांव में आक्रमण किया था। आक्रमण के बाद यह गांव फिर बसा, क्योंकि गांव की रहने वाली एक महिला ‘जसकौर’ उस दिन अपने पीहर (अपने घर) गई हुई थी। इस दौरान जसकौर गर्भवती थी, जो कि गांव में मौजूद न होने के चलते बच गई। बाद में जसकौर ने दो बच्चों ‘लकी’ और ‘चुंडा’ को जन्म दिया और दोनों बच्चे ने बड़े होकर वापस सोनगढ़ को बसाया, हालांकि गांव के कुछ लोग ऐसे हैं जिनके घर रक्षाबंधन के दिन बेटा या उनके घर में पल रही गाय को बछड़ा हुआ इसके बाद उन्होंने फिर त्यौहार को मनाने का प्रयास किया, लेकिन घर में हुई दुर्घटना के चलते फिर कभी किसी ने रक्षाबंधन नहीं मनाया।

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