Sunday, December 15, 2024
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Sawan 2023 : काशी के इस मंदिर में सावनभर अपने साले के साथ विराजते है काशी विश्वनाथ, दर्शन से होती है हर मनोकामना पूरी

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Sawan 2023 : कहते है काशी के कण-कण में भगवान शकंर निवास करते है। यहां आपको भगवान शिव के छोटे-बड़े असंख्य मंदिर देखने को मिल जाएंगे। धर्म और आध्‍यात्‍म की नगरी काशी का इतिहास वर्षों पुराना है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन को आते है। काशी को भगवान शंकर की निवासस्‍थली भी कहा जाता है। यही कारण है कि इसे अविमुक्‍त क्षेत्र कहते हैं, लेकिन, क्या आप जानते हैं काशी में महादेव का ससुराल भी है? यही नहीं यहां उनके साले निवास करते हैं। पूरे सावन महीने (Sawan 2023) भगवान शिव खुद यहां अपने साले के साथ शिवलिंग स्‍वरूप में निवास करते हैं।

मान्यता है कि सावन (Sawan 2023) में सारंगनाथ के दर्शन पूजन और जलाभिषेक से उतना ही पुण्य मिलता है। जितना काशी विश्वनाथ मंदिर में मिलता है। भगवान श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ ही चर्मरोग से मुक्ति देते हैं। तो आइए सावन के इस पावन महीने में जानते है इस मंदिर के बारे में….

सारंगनाथ के नाम पर ही कहलाया सारनाथ

काशी में भगवान् शिव के कई रूप मौजूद हैं, लेकिन सबमे ख़ास है भगवान् बुद्ध की उपदेश स्थली के करीब स्थित सारंगनाथ मंदिर (Sarang Nath Temple)। कहा जाता है कि सावन में यदि एक बार सारंगनाथ के दर्शन हो जाएं तो काशी विश्वनाथ (Shri Kashi Vishwanath) के दर्शन के बराबर पुण्य फल प्राप्‍त होता है। कहते हैं कि सारंगनाथ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम सारनाथ पड़ा। पहले इस क्षेत्र को ऋषिपतन मृगदाव कहते थे। इस मंदिर में एक साथ मौजूद है दो शिवलिंग एक छोटा तो एक बड़ा।

यह भी पढ़ें- Sawan 2023 : काशी का एक ऐसा शिवालय जहां सावन में भी नहीं होता महादेव का जलाभिषेक! बंद रहता है मंदिर का कपाट

शिव विवाह के वक्‍त तप में लीन थे सारंग ऋषि दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री सती का विवाह शिव से किया तो उस समय उनके भाई सारंग ऋषि उपस्थित नहीं थे। वो तपस्या के लिए कहीं अन्‍यत्र गये हुए थे। तपस्या के बाद जब सारंग ऋषि अपने घर पहुंचे तो उन्हें पता चला की उनके पिता ने उनकी बहन का विवाह कैलाश पर रहने वाले एक औघड़ से कर दिया है।

औघड़ से बहन के विवाह की बात सुनकर दु:खी हुए सारंग ऋषि बहन की शादी एक औघड़ से होने की बात सुनकर सारंग ऋषि बहुत परेशान हुए। वो सोचने लगे की मेरी बहन का विवाह एक भस्म पोतने वाले से हो गया है। उन्होंने पता किया की विलुप्त नगरी काशी में उनकी बहन सती और उनके पति विचरण कर रहे हैं।

स्‍वप्‍न में दिखा काशी नगरी का अकाट्य सत्‍य

सारंग ऋषि बहुत ही ज्यादा धन लेकर अपनी बहन से मिलने पहुंचे। रास्ते में, जहां आज मंदिर है वहीं थकान की वजह से उन्हें नींद आ गयी। उन्होंने स्वप्न में देखा की काशी नगरी एक स्‍वर्ण नगरी है। नींद खुलने के बाद उन्हें बहुत ग्लानी हुई की उन्होंने अपने बहनोई को लेकर क्‍या-क्‍या सोच लिया था। जिसके बाद उन्होंने प्रण लिया की अब यहीं पर वो बाबा विश्वनाथ की तपस्या करेंगे उसके बाद ही वो अपनी बहन सती से मिलेंगे।

गोंद चढाने से मिलती है चर्म रोग से मुक्ति

इसी स्थान पर उन्होंने बाबा विश्वनाथ की तपस्या की। तपस्या करते-करते उनके पूरे शरीर से लावे की तरह गोंद निकलने लगी। जिसके बाद उन्होंने तपस्या जारी रखी अंत में उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोले शंकर ने सती के साथ उन्हें दर्शन दिए। बाबा विश्वनाथ से जब सारंग ऋषि से इस जगह से चलने को कहा तो उन्होंने कहा कि अब हम यहां से नहीं जाना चाहते यह जगह संसार में सबसे अच्छी जगह है, जिसपर भगवान् शंकर ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि भाविष्‍य में तुम सारंगनाथ के नाम से जाने जाओगे और कलयुग में तुम्हे गोंद चढाने की परंपरा रहेगी। शिव ने सारंगनाथ को आशीर्वाद दिया कि जो चर्म रोगी सच्चे मन से तुम्हे गोंद चढ़ाएगा तो उसे चर्म रोग से मुक्ति मिल जाएगी।

जीजा साले का है मंदिर

कहते हैं कि सारंग ऋषि का नाम उसी दिन से सारंगनाथ पड़ा और अपने साले की भक्ति देख प्रसन्न हुए बाबा विश्वनाथ भी यहां सोमनाथ के रूप में विराजमान हुए। इस मंदिर में जीजा-साले की पूजा एक साथ होती है। इसलिए इस मंदिर को जीजा-साले का भी मंदिर कहा जाता है। कहा जाता है कि सावन में बाबा विश्वनाथ यहां निवास करते हैं और जो भी व्यक्ति सावन में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन नहीं कर पाता, वह एक दिन भी यदि सारंगनाथ का दर्शन करेगा उसे काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक के बराबर पुण्य मिलेगा। इसके अलावा कहा जाता है कि जब बौद्ध धर्म चरम सीमा पर था तब आदि गुरु शंकराचार्य ने जहां-जहां भ्रमण किया वहां-वहां उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी। ये शिवलिंग भी उन्ही के द्वारा स्थापित किया हुआ है।

श्रद्धालु मानते हैं शिव जी का ससुराल

जीजा साले के मंदिर के नाम से प्रसिद्द इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इस शिव मंदिर को भगवान् भोलेनाथ का ससुराल भी मानते हैं। हालांकि पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार हरिद्वार के कनखल में भगवान शिव का ससुराल है। फिर भी भक्‍त अपने आराध्‍य के साले के मंदिर को भी उनका ससुराल मानते हैं। भगवान् भोलेनाथ आपने साले सारंग ऋषि के साथ यहां विराजमान हैं। वो सारंगनाथ और बाबा सोमनाथ के रूप में यहां है। इन दोनों की साथ में पूजा होती है, इसलिए ये बाबा का ससुराल है, जहां वो अपने साले के साथ सदियों से विराजमान हैं।

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