Sawan 2024 : ‘श्रावणे पूजयेत शिवम्’अर्थात सावन (Sawan 2024) के महीने में भगवान शिव की पूजा-आराधना और जप-तप करना विशेष रूप से फलदाई होता है। इस पावन महीने में शिवभक्त भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा-अर्चना कर उनका जलाभिषेक करते है, हर शिवालय पर भक्तों की भीड़ देखी जाती हैं, लेकिन आज हम आपको वाराणसी के एक ऐसे शिवालय के बारे में बताएंगे जहां सावन के महीने में भी भगवान के मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। जी हां आप भी सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा शिव मंदिर है जो सावन में भी बंद हो और वहां महादेव को जल ना चढ़ाया जाए। तो चलिए जानते है इस मंदिर के बारे में कि ये कहां स्थित है और इसके पीछे का क्या रहस्य है…
यहां स्थित है मंदिर
दरअसल, हम जिस मंदिर की बात कर रहे है, वो पिता महमेश्वर (Pita Maheshwar Temple) का है। जो काशी विश्वनाथ मंदिर (Shri Kashi Vishwanath) से करीब आधे किमी दूर चौक क्षेत्र के शीतला गली में स्थापित है। ये मंदिर साल में बस एक बार शिवरात्रि के दिन खुलता है। बाकी पूरे साल यह मंदिर बन्द रहता है।
भगवान शिव के पिता के तौर माने जाते हैं महेश्वर महादेव
मन्दिर के बारे में ऐसा माना जाता है कि जब गंगा और काशी का कोई अस्तित्व नहीं था तभी से इस यह मन्दिर यहां स्थापित है। मान्यता है कि जब देवी देवता काशी आये तो यहां पर अपने पिता को न देख उन्हें बड़ी निराशा हुई। उनके मन में एक भाव आया कि इस जगह पर उनके माता-पिता का भी वास होना चाहिए। तब देवों ने परमपिता महेश्वर का आह्वान किया और देवों के आह्वान पर यहां भगवान शिव के पिता के महेश्वर महादेव को स्थापित किया।
साल में बस एक दिन खुलता है कपाट
सिंधिया घाट के पास स्थित इस मंदिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग ज़मीन से करीब 30 फीट नीचे है। शिवलिंग के ऊपर एक बड़ा सा छेद है उसी से लोग दर्शन करते हैं। इस मंदिर के अंदर जाने के रास्ते को साल में बस शिवरात्रि के दिन एक बार खोला जाता है और उस दिन विधिवत रुद्राभिषेक भी किया जाता है। दर्शनार्थियों की सुरक्षा को लेकर यह मंदिर बन्द रहता है क्योंकि मन्दिर परिसर का रास्ता काफी पुराना और जर्जर है इसलिए इसे साल में बस एक बार ही खोला जाता है। बाकी पूरे साल शिवलिंग के ऊपर छेद से ही महेश्वर महादेव का जलाभिषेक किया जाता है।
पुजारी के अनुसार महेश्वर मंदिर और सिद्धेश्वरी माता का मंदिर काशी के सबसे पुराने मन्दिर हैं। महेश्वर महादेव शिवलिंग के ऊपर पंचमुखी शेषनाग भी छत्र के रूप में स्थापित हैं, इसका जिक्र काशी खण्ड में भी है।