Sunday, December 15, 2024
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Janmashtami 2024 : भारत का ऐसा चमत्कारी मंदिर, जहां भूख से दुबली हो जाती है भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति

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Janmashtami 2024 : वैसे तो पूरे भारत में भगवान श्री कृष्ण के कई बड़े-छोटे मंदिर है, इनमें से कई मंदिर ऐसे भी है जो काफी प्रसिद्ध और चमत्कारिक और भी हैं। जिनके रहस्यों को आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। आज श्री कृष्ण जनमाष्टमी (Janmashtami 2024) के पावन अवसर पर हम आपको भगवान श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna) के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। दरअसल, दुनिया में आस्था का केंद्र माने जाने वाले भारत के केरल राज्य में भगवान श्री कृष्ण का ऐसा मंदिर है जहां भगवान की मूर्ति भूख में व्याकुल रहती है। अगर उन्हें प्रसाद का भोग न लगाया जाए, तो ऐसा माना जाता है कि वह दुबली पड़ने लगती है। आइए जानते है आखिर ऐसा क्यों है और इसके पीछे क्या रहस्य जुड़ा हुआ है…

Janmashtami 2024 : कहां स्थित है ये मंदिर

हम भगवान श्री कृष्ण के जिस मंदिर की बात कर रहे है वो केरल के जिले कोट्टायम के इलाके थिरुवरप्पू में स्थित है। इसे यहां एक चमत्कारी मंदिर माना जाता है, क्योंकि यहां स्थापित भगवान कृष्ण की मूर्ति को भूख जरा भी बर्दाश्त नहीं है। करीब 1500 साल पुराने इस मंदिर में भगवान कृष्ण को 10 बार प्रसाद खिलाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्लेट में रखा हुआ प्रसाद धीरे-धीरे कम होने लगता है।

केवल 2 मिनट के लिए बंद होता है मंदिर

आदिशंकराचार्य के आदेश के अनुसार, यह मंदिर 24 घंटे में सिर्फ 2 मिनट के लिए ही बंद किया जाता है। मंदिर को 11.58 मिनट पर बंद किया जाता है और उसे 2 मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। मंदिर के पुजारी को ताले की चाबी के साथ ही कुल्हाड़ी भी दी गई है। पुजारी से कहा गया है कि अगर ताला खुलने में समय लगे तो वह कुल्हाड़ी से ताला तोड़ दें, लेकिन भगवान को भोग लगने में देरी ना हो। कहते हैं कि भगवान कृष्ण की मूर्ति सिर्फ 2 मिनट के लिए सोती है। इस प्रथा का सालों से फॉलो किया जा रहा है।

इसके अलावा भगवान का जब अभिषेक किया जाता है, तो विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है, क्योंकि अभिषेक में समय लगता है और उस समय भोग नहीं लगाया जा सकता है। इस घटना को देखकर लोगों को अचरज होता है।

मंदिर से जुड़ी कहानी

भगवान श्रीकृष्ण के इस मंदिर से कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि वनवास के दौरान पांडव, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करते और उन्हें भोग लगाते थे। पांडवों ने वनवास समाप्त होने के बाद थिरुवरप्पु में ही इस भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को छोड़कर चले गए थे, क्योंकि यहां के मछुआरों ने मूर्ति को यही छोड़ने का अनुरोध किया था। मछुआरों ने भगवान श्रीकृष्ण की ग्राम देवता के रूप में पूजा करनी शुरू कर दी। हालांकि मछुआरे एक बार संकट से घिर गए, तो एक ज्योतिष ने उनसे कहा कि आप सभी पूजा ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को एक समुद्री झील में विसर्जित कर दिया।

इसके अलावा एक कहानी ये भी है कि केरल के एक ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार नाव से एक बार यात्रा कर रहे थे, लेकिन उनकी नाव एक जगह अटक गई। लाख कोशिशों के बाद भी नाव आगे नहीं बढ़ पाई, तो उनके मन में सवाल खड़ा होने लगा कि ऐसा क्या है कि उनकी नाव आगे नहीं बढ़ रही है। इसके बाद उन्होंने पानी में नीच डुबकी लगाकर देखा तो वहां पर एक मूर्ति पड़ी हुई थी। ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार ने मूर्ति को पानी में से निकाली और अपनी नाव में रख ली। इसके बाद वह एक वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए रुके और मूर्ति को वहीं रख दी। जब वह जाने लगे तो मूर्ति को उठाने की कोशिश की, लेकिन वह वहीं पर चिपक गई। इसके बाद वहीं पर मूर्ति स्थापित कर दी गई। इस मूर्ति में भगवान कृष्ण का भाव उस समय का है जब उन्होंने कंस को मारा था तब उन्हें बहुत भूख लगी थी। इस मान्यता की वजह से उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है।

दिन में 10 बार लगाता है भोग

मान्यता है कि यहां पर स्थित भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं होती है जिसकी वजह से उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। भगवान को दिन में 10 बार भोग लगाया जाता है। अगर भोग नहीं लगाया जाता है तो उनका शरीर सूख जाता है। यह भी मान्यता है कि प्लेट में से थोड़ा-थोड़ा करके चढ़ाया गया प्रसाद गायब हो जाता है। यह प्रसाद भगवान श्रीकृष्ण खुद ही खाते हैं।

ग्रहण काल में भी नहीं बंद होता है मंदिर

पहले इस मंदिर को आम मंदिरों की तरह ही ग्रहण काल में बंद कर दिया जाता था, लेकिन एक बार जो हुआ उसे देखकर सभी लोग हैरान रह गए। ग्रहण खत्म होते-होते उनकी मूर्ति सूख जाती है, कमर की पट्टी भी खिसककर नीचे चली गई थी। इस बात की जानकारी आदिशंकराचार्य को हुई तो वह खुद इस स्थिति को देखने और समझने के लिए वहां पहुंचे। सच्चाई जानकर वह भी आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद उन्होंने कहा कि ग्रहण काल में भी मंदिर खुला रहना चाहिए और भगवान को समय पर भोग लगाए जाए।

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