Sawan 2023 : भगवान शिव (Lord Shiva) का प्रिय मास सावन (Sawan 2023) की शुरुआत 4 जुलाई से हो चुकी है। इस महीने में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) का भी विशेष महत्व होता है। सावन आते ही भगवा चोला पहने भोलेनाथ के भक्त अपने शिव-शंभू को प्रसन्न करने के लिए हाथों में कावंड़ लिए हरिद्धार से गंगाजल लाने के लिए निकल पड़ते हैं। कहते हैं जो जातक श्रावण माह में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) पर निकलते हैं, भगवान भोलेनाथ उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं, लेकिन क्या आप जानते है कि कावड़ यात्रा क्यों की जाती है, इसका क्या महत्व है….
Sawan 2023 : कांवड़ यात्रा महत्व
इस बार ‘कांवड़ यात्रा’ 4 जुलाई से शुरू होकर 16 जुलाई तक चलेगी। कांवड़ यात्रा को लेकर शिवभक्तों में बहुत उत्साह रहता है। कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। इस यात्रा में लाखों भक्त शिव जी को प्रसन्न करने के लिए गंगाजल से उनका अभिषेक करते हैं। इच्छा पूर्ति के लिए कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए पैदल यात्रा कर पवित्र नदी गंगा जी से जल भरकर लाते हैं और शिव जी को अर्पित करते हैं।
कांवड़ यात्रा’ का संदेश
शिव ही सृष्टिकर्ता हैं, शिव ही अनन्त हैं और शिव ही प्रेम हैं और वो भक्त के लोटे भर जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं। ये बात ये संदेश देती है, अगर भक्ति में पवित्रता हो और वो पानी जैसा रंगहीन हो तो सृष्टिकर्ता भी प्रसन्न हो जाते हैं, ऐसे में हम और आप मनुष्य क्या चीज हैं, इसलिए हर इंसान में एक-दूसरे के प्रति निस्वार्थ भाव का प्रेम होना चाहिए, जिसमें केवल प्यार का रंग घुला होना चाहिए।
रामायण’ में भी है जिक्र
ये कांवड़ों का अपने शिव के प्रति प्रेम और भक्ति की शक्ति ही है जो वो मीलों पैदल यात्रा करके कांवड़ में जल लेकर आते हैं। आपको बता दें कि त्रेता युग में श्रावण मास में ही श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा शुरू की थी। तभी से शिवभक्ति की यह परंपरा चली आ रही है। इस बात का उल्लेख ‘वाल्मीकि रामायण’ में भी है।
श्रवण कुमार थे पहले कांवड़-यात्री
श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन मां-पिता को कंधे में बैठाकर हरिद्वार लाए थे और उन्हें गंगा स्नान कराया, वापसी में अपने साथ गंगाजल भी ले गए थे तो वो पहले कांवड़-यात्री थे,तो वहीं द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान ही युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम ने हरिद्वार से गंगाजल लाकर शिव की अराधना की थी। कांवड़ यात्रा में बहुत सारी बातों का ध्यान भी रखना होता है जो कि निम्मलिखित है..
कांवड़ यात्रा में कांवड़ को धरती पर नहीं रखना होता है। अगर यात्री थक जाए तो कांवड़ को टांग दिया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान मदिरा पान, मांस-मच्छी खाना वर्जित है। कांवड़ यात्रा के दौरान मन-तन दोनों का सात्विक होना अनिवार्य है। कांवड़ यात्रा के दौरान केवल इंसान को शिव शक्ति का ही ध्यान रखना होता है। कांवड़ यात्रा इंसान को संयम, शांति और ध्यान का पाठ सिखाती है।
कांवड़ यात्रा के नियम (Kanwar Yatra Important Rules)
- कावड़ यात्रा बहुत पवित्र यात्रा मानी जाती है. इसमें कांवड़ियों को शुद्धता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। पूरी यात्रा में बिना स्नान के कांवड़ को छूना अशुभ माना जाता है।
- यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन का सेवन करना होता है।
- कांवड़ यात्रा पर जाते वक्त कांवड़िए बाइक, बस आदि साधन का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन लौटते वक्त गंगाजल से भरे कांवड़ को कंधों पर पैदल यात्रा कर ही लाना होता है।
- यात्रा के दौरान किसी कारण से रुकना पड़ जाए या आराम करते समय तो गंगाजल से भरे कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते। गलती से अगर कांवड़ का जमीन पर स्पर्श हो जाए तो दोबारा गंगाजल भरकर लाना पड़ता है. इसे किसी ऊंचे स्थान पर या स्टैंड पर रखना चाहिए।
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