वाराणसी। सावन के पहले सोमवार को यादव बंधुओं ने सैकड़ों साल पुरानी परम्परा का निर्हवन करते हुए बाबा काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक किया। पूरे पारम्परिक वेशभूषा में शहर भर के यादव बंधु हाथों में जल लेकर शहर के प्रमुख शिवालयों से होते हुए वहां बाबा का जलाभिषेक करने पहुंचे, लेकिन क्या आप जानते है इस 92 साल से भी ज्यादा पुरानी परंपरा के बारे में कि आखिर क्यों सावन (Sawan 2024) के पहले सोमवार को यादव बंधु ही श्री काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक करते है। आइए आपको बताते है इस अनोखी परंपरा के बारे में…
बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस (Banaras) की परंपराएं अनोखी होती हैं। यही परंपराएं इस शहर को दुनिया से अलग बनाती हैं। ठीक ऐसे ही ये यादव बंधुओं द्वारा जल चढ़ाने की भी परंपरा है। वाराणसी के केदारघाट से इस जलाभिषेक यात्रा की शुरुआत होती है. सबसे पहले यादव बंधु गौरी केदारेश्वर का जलाभिषेक करते हैं। उसके बाद तिलभांडेश्वर और फिर दशाश्वमेध घाट से जल लेकर बाबा विश्वानथ (Kashi Vishwanath) को जल अर्पण करते हैं। बाबा विश्वनाथ के दरबार के बाद मृत्युंजय महादेव और त्रिलोचन महादेव के दर्शन कर काल भैरव को जल अर्पण के बाद ये यात्रा पूरी होती है।
जानें क्यों यादव बंधु करते है जलाभिषेक
सैकड़ों साल पहले जब पूरे देश में अकाल था और बारिश नहीं होने के कारण पशु पक्षी और मनुष्य बेहाल थे। उस वक्त नगर के यादव बन्धुओं ने लोक कल्याण के लिए काशी के शिवालयों में जलाभिषेक किया था। इसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और बारिश हुई, तभी से ये परम्परा निरन्तर चली आ रही है।
92 सालों से चली आ रही परम्परा
92 सालों से अधिक समय से ये परम्परा चली आ रही है। इस जलाभिषेक यात्रा में यादव बंधु बिल्कुल पारम्परिक वेश भूषा के अलावा नयनों में कागल लगाकर बाबा के जलाभिषेक के लिए निकलते हैं और सभी शिवालयों पर जल चढ़ाते है।
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