वाराणसी। चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन मां दुर्गा के षष्ठम स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा का विधान है। वाराणसी के चौक क्षेत्र के संकठा मंदिर के पीछे माता कात्यायनी का मंदिर है। मां के दर्शन के लिए भक्तों की लाइन सुबह से ही लग गई। अर्द्धरात्रि के बाद से श्रद्धालु कतारबद्ध हो गए थे।
हल्दी और कुमकुम का लेपन करने से कुंवारी कन्याओं मिलता है मनचाहा वर
ऐसी मान्यता है कि माता को हल्दी और कुमकुम चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है खास तौर से माता को हल्दी और कुमकुम का लेपन करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है।
मां कात्यायनी करती हैं दानवों और पापियों का नाश
देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है। मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।
ऐसी मान्यता है कि कत नामक ऋषि की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर नवदुर्गा उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्मी भगवती ने शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तक ऋषि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और दशमी के दिन महिषासुर का वध किया था।
कहा जाता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां कात्यायनी का स्वरूप चमकीला और तेजमय है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में रहता है। वहीं नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। मां कात्यायनी के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार धारण करती हैं व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित रहता है।