वाराणसी। चैत्र नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माता कुष्माण्डा की पूजा होती है। काशी में माता कुष्मांडा का अति प्राचीन मंदिर दुर्गाकुंड में स्थित है। माता के दर्शन के लिए देर रात से श्रद्धालु कतारबद्ध होकर माता के दर्शन कर रहे हैं।
मंदिर के महंत सोनू महराज ने बताया कि नवरात्र 9 दिनों में चौथे दिन माता कुष्मांडा के दर्शन का विधान है। उन्होंने बताया कि आज के दिन यहां पर दर्शन का खास महत्व है। उन्होंने बताया कि साल भर पूरे देश से लोग यहां मां कुष्मांडा को पूजने और अपने पापों का प्रायश्चित करने आते हैं पर नवरात्र के चौथे दिन भक्तों का रेला सुबह के 4 बजे से ही उमड़ पड़ता है।
मां को मालपुआ चढाने का विशेष महत्व
उन्होंने बताया कि आज के दिन मां को मालपुआ चढाने का विशेष महत्व है। इसके अलावा आज के ही दिन कन्याओं को रंग-बिरंगी चुनरी और कपड़े भेट करने से धन-संपदा में वृद्धि होती है। माता कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण कूष्माण्डा देवी के नाम से जानी जाती हैं। इनकी पूजा के दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे़ को कहा जाता है। कूम्हडे़ की बलि इन्हें प्रिय है। इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।
देवी की पूजा से सभी कष्टों, रोगों का अंत होता है
देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं। अतः इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी के हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा है। देवी के आठवें हाथ में बिजरंके (कमल के फूल का बीज) का माला है। यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाला है। देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं। जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा के चौथे दिन करता है उसके सभी प्रकार के कष्ट रोग, शोक का अंत होता है और आयु एवं यश की प्राप्ति होती है।