Dussehra : नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की आराधना के बाद बड़े ही धूमधाम से विजय दशमी (Vijaya Dashmi) का पर्व मनाया जाता है, इसे दशहरा भी कहते है। हिंदू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। दशहरा (Dussehra) के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर लोग मनाते है। जहां एक ओर इस दिन पूरे देश में जगह-जगह रावण का पुतला दहन किया जाता है, वहीं दूसरी ओर भारत में एक ऐसी जगह भी है जहां रावण (Ravana) की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं यहां रावण का भव्य मंदिर भी है, जो साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है और यहां रावण के दर्शन को हजारों लोग पहुंचते है। अब आप सोच रहे होंगे कि भगवान राम (Lord Rama) ने जिस अधर्मी रावण का वध किया उसे लोग पूज रहे है, आखिर ऐसा क्यों और वो कौन सी जगह है ? न जाने ऐसे कई सवाल होंगे जो आपके मन में चल रहें होंगो, तो फिर चलिए आपके इन सभी सवालों का हम विस्तार से जवाब देते है…
यहां स्थित है मंदिर
हम जिस मंदिर की बात कर रहें है, वह उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है। जहां रावण का एक मंदिर स्थापित किया गया है। बता दें कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है, जो सिर्फ दशहरे के दिन ही खुलता है।
सन् 1968 में हुआ था मंदिर का निर्माण
दरअसल, इस मंदिर के कपाट दसवीं के दिन ब्रह्म मुहूर्त में खोला जाता है। जहां पूजा-पाठ होने के बाद शाम ढलते ही इसे बंद कर दिया जाता है। रावण के इस मंदिर परिसर में भगवान शंकर का एक शिवालय भी बनाया गया है, जिसका निर्माण उन्नाव के गुरु प्रसाद शुक्ल ने सन् 1868 में कराया था। इतना ही नहीं इस मंदिर में मां 23 स्वरूपों में विराजमान है। कहा जाता है कि इस मंदिर की सुरक्षा के लिए महादेव के भक्त रावण को इसके मुख्य द्वार पर बिठाया गया है।
साल में एक बार खुलता है मंदिर का कपाट
रावण की पूजा कर इस मंदिर को फिर से साल भर के लिए बन्द कर दिया जाता है। जिसके चलते हजारो लोग मंदिर में पूजा करने पहुचंते है। मान्यता है कि रावण बहुत पराक्रमी विद्वान था, यहां उसे भगवान मानते हुए विधि-विधान से पूजते है। अगर रावण के व्यक्तित्व की बात करें तो उसे सभी अधर्मी राजा कहते है, साथ ही उसका पुतला दहन कर असत्य पर सत्य की जीत के तौर पर विजया दशमी के पर्व को मनाते है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि रावण का यहीं व्यक्तित्व उसकी पूजा भी कराता है।
इस कारण होती है रावण की पूजा
बता दें कि, विजयदशमी के दिन इस मंदिर में पूरे विधि-विधान से रावण का दुध से स्नान और अभिषेक कर श्रृंगार किया जाता है। उसके बाद पूजन के साथ रावण की स्तुति कर आरती की जाती है। बता दें कि ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। ये वही समय था जब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े होकर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योंकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है, जिस कारण लोग उसके इस स्वरुप को ध्यान में रखकर उसकी यहां पूजा करते है।