Sunday, December 15, 2024
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Chaitra Navratri 2024: भारत में यहां विराजती हैं स्कंदमाता, दर्शन मात्र से मिलता है संतान का सुख

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Chaitra Navratri 2024: इन दिनों पूरे देश में चैत्र नवरात्रि ( Chaitra Navratri 2024) के पावन पर्व मनाया जा रहा है। देशभर में स्थित देवी के सभी मंदिरों में माता के भक्त उनके दर्शन को पहुंच रहें है। सभी भक्तों शक्ति की भक्ति में लीन है। इस पवित्र मौके पर हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूप की पूजा बड़े ही धूम-धाम के साथ की जाती है। आज चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन है, जो स्कंदमाता को समर्पित है, लेकिन क्या आपको पता है भारत में स्कंदमाता का एकमात्र मंदिर है। कहा जाता है यहां दर्शन करने से माता अपने भक्तों की सारी मुरादे पूरी करती है। आइए आपको बताते है ये मंदिर कहां स्थित है और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।

यहां स्थित है माता का मंदिर

मां स्कंदमाता का मंदिर सबसे पवित्र महादेव की नगरी काशी के जैतपुरा क्षेत्र में स्थित है। कहा जाता है कि स्कंदमाता का भारत में यह एकमात्र मंदिर है, इसलिए इस मंदिर का महत्व पूरे देश में है। स्कंदमाता को सहनशक्ति की देवी भी कहा जाता है। मंदिर में मां की प्रतिमा मौजूद है। कहा जाता है कि उनकी गोद में उनके पुत्र कुमार कार्तिकेय भी विराजमान हैं।

माता के दर्शन से संतान सुख की मनोकामना पूरी होती है
मंदिर के पुजारी के अनुसार माता के दर्शन से संतान सुख की मनोकामना पूरी होती है इसलिए वर्ष भर इनके दर्शन को सुहागिनें मंदिर आती हैं। स्कंदमाता को कार्तिकेय बहुत प्यारे हैं इसलिए उन्हें स्कंदमाता कहा गया। साथ ही यहां उनकी गोद में कार्तिकेय विराजमान हैं।

कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं मांं

देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

स्कंदमाता मंदिर की पौराणिक कथा

ऐसी मान्यता है कि देवासुर राक्षस अपनी अलौकिक शक्तियों से संत और अन्य लोगों को बहुत परेशान करता था। देवासुर का विनाश करने के लिए भगवान शिव से माता पार्वती को भेजा। माता पार्वती ने उस राक्षस का विनाश कर दिया। इस घटना के बाद काशी में मां के इस रूप को स्कंदमाता के रूप में पूजा जाने लगा। यह भी बोला जाने लगा कि उन्होंने काशी की सभी बुरी शक्तियों से रक्षा करती है।

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